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असम चाय के बागान
असम चाय के बागानों को लेकर मेरे मन में एक बहुत ही औपनिवेशिक छवि बसी हुई है। अंग्रेजों द्वारा संचालित चाय के उद्यान जिनमें बड़े-बड़े बंगलों में वे रहा करते थे। तथा वहीं पर स्थित चाय के उत्पादन और संकुलन के केंद्र और अपनी पीठ पर बांस की टोकरियाँ लादे इन बागानों से चाय की पत्तियाँ बीनते हुए श्रमिकों के समूह।
लोग हमेशा से चाय के उद्यान का स्वामी होने के आकांक्षी रहे हैं। मेरे अनुमान से यह आज भी चलता आ रहा है, यद्यपि अब अधिकतर उद्यान व्यक्तिगत स्वामित्व के बजाय निगमों द्वारा संचालित किए जा रहे हैं। भारत के उत्तर पूर्वीय भागों में, विशेष कर पूर्वीय असम और दार्जिलिंग के आस-पास के इलाके में विश्व की 20% से भी अधिक चाय पत्ती का उत्पादन होता है। ऐसे में इन इलाकों को विश्व के टिस्पून्स या विश्व का चाय का चम्मच कहना गलत नहीं होगा।
मैंने इससे पहले भी अपनी केरल और श्रीलंका की यात्राओं के दौरान चाय के बागान देखे हैं, लेकिन असम के चाय बागानों के प्रति मेरा आकर्षण बचपन से रहा है। जब से मैंने पाठशाला में उनके बारे में पढ़ा था, तब से मेरे मन में यह बात बैठ गयी थी कि उनके बारे में और जानने के लिए मुझे वहां जाना ही है। एक ओर जहां ये चाय बागान विश्व को स्वाद भरी चाय प्रदान करते हैं, वहीं दूसरी ओर ये अनेक लोगों के रोजगार और रोजी-रोटी का प्रमुख जरिया भी है।
असम चाय पत्तियों की बिनाई
असम चाय की पत्तोयों की बिनाई
प्रत्येक चाय के बागान में तरो-ताज़ा अंकुरित चाय की पत्तियों की लगातार बिनाई की जाती है। निश्चित रूप से कहे तो, उत्तम चाय पत्ती के लिए प्रत्येक कटाई के दौरान दो पत्ते और एक अंकुर एक साथ तोड़े जाते हैं। एक सामान्य मजदूर प्रति दिन लगभग 60-80 किलो तक चाय पत्तियों की बिनाई कर सकता है और हर एक किलो के पीछे उसे लगभग 2-3 रूपये दिए जाते हैं। एक बांस की टोकरी लगभग 5 किलो तक चाय पत्तियाँ ढो सकती है और ये पत्तियाँ दिन में अनेक बार तौली जाती हैं।
आम तौर पर ये मजदूर अपना काम प्रातःकाल सूर्योदय के साथ ही आरंभ करते हैं और सूर्यास्त तक काम करते रहते हैं। इसके दौरान उन्हें दोपहर के खाने की एक छुट्टी और दो वक्त की चाय की छुट्टी दी जाती है। पत्तों के अंकुरण के आधार पर हर सुबह इन मजदूरों को उनके पर्यवेक्षक द्वारा एक क्षेत्र सौंपा जाता है और ये मजदूर कार्यरत न होने के बावजूद भी बड़े ही संगठित रूप से अपना काम करते रहते हैं। उसके बाद पूरे दिन के काम के अनुसार उन्हें मजदूरी दी जाती है।
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