idgah kahani ka saaraansh apne shabdo me likhiye
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ईद के अवसर पर गांव में ईदगाह जाने की तैयारियां हो रही है। सभी लोग कामकाज निपटा कर ईद के मेले में जाने की जल्दी में है। बच्चे सबसे ज्यादा खुश हैं , उन्हें गृहस्थी की चिंताओं से कोई मतलब नहीं। उन्हें तो यह भी नहीं मालूम कि उनके अब्बाजान ईद के लिए पैसों का इंतजाम करने चौधरी कायमअली के घर दौड़े जा रहे हैं। और यदि चौधरी पैसे उधार देने से मना कर दे तो वह ईद का त्यौहार नहीं मना पाएंगे। उनका यह ईद की खुशी के अवसर पर मुहर्रम जैसे मातम में बदल जाएगा। बच्चों को तो बस ईदगाह जाने की जल्दी है।
हामिद चार-पांच साल का दुबला पतला लड़का है। वह अपनी दादी अमीना के साथ रहता है। उसके माता-पिता गत वर्ष गुजर चुके हैं। परंतु उसे बताया गया है कि उसके अब्बाजान रुपए कमाने गए हैं। उसकी अम्मी जान अल्लाह मियां के घर से उसके लिए अच्छी-अच्छी चीजें लाने गई है। इसलिए हामिद आशावान है और प्रसन्न है।अमीना स्वयं सवैयों (मीठा पकवान) के इंतजाम के लिए घर पर रहकर हामिद को तीन पैसे देकर मेले में भेज देती है। हामिद के साथ उसके दोस्त मोहसीन , महमूद , नूरे और सम्मी भी है।गांव के बच्चे मेले की ओर चले हामिद भी साथ में था। रास्ते में बड़ी-बड़ी इमारतें , फलदार वृक्ष आए बच्चे कल्पनाशील होने के नाते तरह-तरह की कल्पनाएं तथा उन चीजों पर टीका-टिप्पणी करते आगे बढ़ते जा रहे थे। रास्ते में पुलिस लाइन आने पर एक ने कहा यहां सिपाही कवायद करते हैं। मोहसीन का कहना था कि यही पुलिस वाले चोरी भी करवाते हैं। हामिद को सुनकर आश्चर्य होता है। इस प्रकार बालकों में पुलिस के प्रति अलग अलग विचारधारा थी।
उनके भीतर की भाईचारे की भावना उनको आपस में जोड़े रखती है। धर्म आपस में लोगों को जोड़ता है तोड़ता नहीं। धर्म के नाम पर तोड़ने वाले धर्म के रहस्य को समझते ही नहीं कोई भी धर्म मनुष्य मनुष्य के बीच भेद नहीं करता।
दादी अमीना , हामिद के त्याग उसका सुने उसके विवेक को देखकर हैरान रह गई। सुबह से बच्चा भूखा दूसरों को मिठाई खाते देख कैसे अपने मन को मनाया होगा। मेले में भी इसे अपनी बूढ़ी दादी की याद बनी रही , यह सब सोचकर अमीना का मन गदगद हो गया।