If I became a astronout essay in hindi
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Explanation:
यदि मैं एस्ट्रोनॉट बन जाऊं तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा, एस्ट्रोनॉट का कैरियर आकर्षक होता है एस्ट्रोनॉट रॉकेट में बैठकर अंतरिक्ष में जाते हैं, अंतरिक्ष में अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन है जहां पर कई एस्ट्रोनॉट रहते हैं कुछ एस्ट्रोनॉट तो चंद्रमा की सतह पर भी चल कर आए हैं, यह देखकर आश्चर्य होता है कि एस्ट्रोनॉट्स अंतरिक्ष स्टेशन के अंदर इधर-उधर उड़ते रहते हैं क्योंकि वहां पर गुरुत्वाकर्षण नहीं है यह सब देख कर बहुत अजीब लगता है कैस्टर नोट ऐसे माहौल में कैसे रहते होंगे, बिना गुरुत्वाकर्षण के होना कैसा लगता होगा.
अगर मैं एस्ट्रोनॉट बन जाऊं चंद्रमा और मंगल दोनों पर जाना चाहूंगा एस्ट्रोनॉट बन कर चंद्रमा पर कूदना मुझे बहुत अच्छा लगेगा, मैं एक एस्ट्रोनॉट बन मंगल ग्रह पर जाना चाहूंगा, मंगल ग्रह कि लाल सतह पर चलना बहुत ही मजेदार होगा, मैं अंतरिक्ष में जाकर पृथ्वी को एक नीले गोले की तरह देखना चाहता हूं, ऊपर से देखने पर हमारी धरती बहुत सुंदर दिखाई देती है जब मैं एस्ट्रोनॉट बन जाऊंगा तो पृथ्वी का चक्कर लगाऊंगा और अंतरिक्ष से पूरे भारत देश को और महासागरों को देखूंगा अंतरिक्ष से हमारा पूरा भारत दिखाई देगा, यह पल बहुत ही मजेदार होगा.
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Answer:
अन्तरिक्ष ने प्रारम्भ से ही मानव को अपनी ओर आकर्षित किया है । पहले मनुष्य अपनी कल्पना और कहानियों के माध्यम से अन्तरिक्ष की सैर किया करता था । अपनी इस कल्पना को साकार करने के संकल्प के साथ मानव ने अन्तरिक्ष अनुसन्धान प्रारम्भ किया और उसे बीसवीं सदी के मध्य के दशक में इस क्षेत्र में अभूतपूर्व सफलता प्राप्त हो ही गई ।
आज मनुष्य न केवल अन्तरिक्ष के कई रहस्यों को जान गया है, बल्कि बह अन्तरिक्ष की सैर करने के अपने सपने को भी साकार कर चुका है । अन्तरिक्ष में मानव के सफर की शुरूआत वर्ष 1957 में हुई । 4 अक्टूबर, 1967 को सोवियत संघ ने ‘स्पुतनिक’ नामक अन्तरिक्ष यान को अन्तरिक्ष की कक्षा में भेजकर एक नए अन्तरिक्ष युग की शुरूआत की ।
इस यान में अन्तरिक्ष में जीवों पर पडने बाले विभिन्न प्रभावों का अध्ययन करने के लिए एक ‘लायका’ नामक कुतिया को भी भेजा गया था । अन्तरिक्ष में मानव के सफर को एक और आयाम देते हुए 31 जनवरी, 1958 को संयुक्त राज्य अमेरिका ने ‘एक्सप्लोरर’ नामक अन्तरिक्ष यान छोड़ा । इस यान का उद्देश्य पृथ्वी के ऊपर विद्यमान चुम्बकीय क्षेत्र एवं पृथ्वी पर उसके प्रभावों का अध्ययन करना था ।
स्पुतनिक एवं एक्सप्लोरर के अन्तरिक्ष में भेजे जाने के साथ ही विश्व में अन्तरिक्ष युग की शुरूआत हुई, दुनिया अन्तरिक्ष प्रौद्योगिकी में प्रगति के साथ ही विकास की आधुनिक उन्नत अवस्था तक पहुँच गई है । अन्तरिक्ष यानों का उद्देश्य अन्तरिक्ष के रहस्यों पर से पर्दा हटाना था, इसलिए अन्तरिक्ष यानों में कैमरे भी लगाए जाते थे ।
अक्टूबर, 1969 में सोवियत संघ द्वारा भेजे गए ‘लूना-3’ नामक अन्तरिक्ष यान से सर्वप्रथम चन्द्रमा के चित्र प्राप्त हुए थे । इसके बाद वर्ष 1962 में अमेरिका द्वारा भेजे गए मैराइनर-2 नामक यान की सहायता से शुक्र ग्रह के बारे में हमें कई जानकारियाँ प्राप्त हुई ।
इस सफलता से प्रेरित होकर अमेरिकी अन्तरिक्ष अनुसन्धान संस्थान ‘नासा’ ने वर्ष 1964 में ‘मैराइनर-4’ नामक अन्तरिक्ष यान का प्रक्षेपण मंगल ग्रह के रहस्यों का पता लगाने के लिए किया । प्रारम्भ में अन्तरिक्ष अनुसन्धान हेतु भेजे जाने वाले यान मानवरहित होते थे ।
अन्तरिक्ष में मानव का पहला कदम 12 अप्रैल, 1961 को पड़ा, जब सोवियत संघ के यूरी गागीरन अन्तरिक्ष में पहुँचने वाले विश्व के प्रथम व्यक्ति बने । इसके बाद सोवियत संघ की ही वेलेंटीना तेरेश्कोवा ने वोस्टॉक-6 नामक अन्तरिक्ष यान से अन्तरिक्ष की यात्रा करके विश्व की प्रथम महिला अन्तरिक्ष यात्री होने का गौरव प्राप्त किया ।
मानव द्वारा शुरू किए गए अन्तरिक्ष अनुसन्धान के इतिहास में 20 जुलाई, 1969 का दिन अविस्मरणीय है । इसी दिन अमेरिका के दो अन्तरिक्ष यात्री नील आर्मस्ट्राग एवं एडविन एल्ड्रिन ने चन्द्रमा की धरती पर अपने कदम रखे ।
वे ‘अपोलो-11’ नामक अन्तरिक्ष यान पर सवार होकर चन्द्रमा की सतह तक पहुँचे थे । इस अन्तरिक्ष यान में इन दोनों के साथ माइकेल कॉलिन्स भी सवार थे नील आर्मस्ट्राग ने चन्द्रतल पर पहुँचकर कहा था- ”सुन्दर दृश्य है सब कुछ सुन्दर है ।”
अन्तरिक्ष युग की शुरूआत के समय किसी ने यह कल्पना भी नहीं की थी कि भविष्य में अन्तरिक्ष पर्यटन भी प्रारम्भ हो जाएगा । वर्ष 2002 में डेनिस टीटो ने दुनिया के प्रथम अन्तरिक्ष पर्यटक बनने का गौरव हासिल किया ।