ii) अंग्रेजी सरकार द्वारा बार-बार भूमि राजस्व व्यवस्था में किये जाने वाले परिवर्तनों
को आप किस रूप में देखते हैं? अपने शब्दों में बताएँ।
Answers
अंग्रेजी सरकार द्वारा बार बार भूमि राजस्व व्यवस्था में किए जाने वाले परिवर्तनों के संदर्भ में अपने विचार निम्न प्रकार से स्पष्ट किए गए है।
- अंग्रेजी ने भारत में भूमि राजस्व व्यवस्था का आरंभ किया। शुरुवात में उन्होंने प्रचलित व्यवस्था को ही चलाए रखा परन्तु आगे चलकर उन्होंने संग्रहण तथा निर्धारण की अलग अलग व्यवस्थाओं की शुरुवात की जो भारत के अलग अलग प्रदेशों के शासक जरूरतों व सामाजिक व्यवस्था के अनुसार बनाई गई थी।
- ये व्यवस्थाएं थी जमींदारी , रैयतवारी तथा महलवारी व्यवस्था ।
- वर्षों के प्रयोग के आधार पर वे व्यवस्थाएं बनाई गई थी। कंपनी ने अधिकारियों द्वारा भिन्न भिन्न प्रकार के निरीक्षण व परीक्षण किए गए थे। उन्होंने गलतियां भी की तथा उन्हें सुधारा भी। उन्होंने कृषि कि उन्नति पर विचार किया ।
- अंग्रेजी शासकों का उद्देश्य था सबसे कम झामेका करके सबसे अधिक भू राजस्व कैसे वसूल किया जाए , इसी नियत से अंग्रेजी शासकों ने अनेक प्रकार की भूमि व्यवस्थाओं का निर्माण किया , भू राजस्व नीति में कई परिवर्तन किए ,आरंभ में उनका उद्देश्य केवल अधिकतम लगान इकट्ठा करना था।
- आगे चलकर अधिक उद्देश्य जोड़े गए वे थे भारतीय कृषि को अंतरराष्ट्रीय व्यापार से जोड़ना तथा कृषि का बाजारीकरण करना ।
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Answer:
Explanation:
भारत में अंग्रेजों की आय का एक प्रमुख स्रोत भू-राजस्व था। भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान मोटे तौर पर तीन प्रकार की भू-राजस्व नीतियां मौजूद थीं।
आजादी से पहले, देश में तीन प्रमुख प्रकार की भूमि काश्तकार प्रणाली प्रचलित थी:
जमींदारी व्यवस्था
महलवारी प्रणाली
रैयतवाड़ी व्यवस्था
इन प्रणालियों में मूल अंतर भू-राजस्व के भुगतान के तरीके के संबंध में था।
जमींदारी व्यवस्था
ज़मींदारी व्यवस्था लॉर्ड कॉर्नवालिस द्वारा 1793 में स्थायी बंदोबस्त के माध्यम से पेश की गई थी, जिसने वास्तविक किसानों के लिए निश्चित किराए या अधिभोग अधिकार के किसी प्रावधान के बिना सदस्यों के भूमि अधिकारों को स्थायी रूप से निर्धारित किया था।
जमींदारी प्रणाली के तहत, जमींदारों के रूप में जाने जाने वाले बिचौलियों द्वारा किसानों से भू-राजस्व एकत्र किया जाता था।
जमींदारों द्वारा एकत्र किए गए कुल भू-राजस्व में सरकार का हिस्सा 10/11 को रखा गया था, और शेष जमींदारों के पास जा रहा था।
यह प्रणाली पश्चिम बंगाल, बिहार, ओडिशा, यूपी, आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश में सबसे अधिक प्रचलित थी।
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