(II)
हे ग्राम-तता नमवार।।
अन कोलाहल से दूर
कहीं एकाको सिमटा-सा नियारा,
रवि-शशि का उतना नहीं
कि जितना प्राणों का होता प्रकाश,
श्रम-वैभव के बल पर करते हो
जड़ में चेतनता का विकास
दान-दानों से फूट रहे, सौ-सौ दानों के हो हास
यह है न पसीने की धारा
यह गंगा की है धवल धार-हे ग्राम-देवता नमस्कार।
तुम जन-मन के अधिनायक हो
तुम हँसो कि फूले-फले देश,
लाओ सिंहासन पर वैये
पत राय ताहारा है गरोग,
उर्वरा भूमि के नए खेत के
नए धान्य से सजे देश,
तुम भू पर रहकर भूमि भार
धारण करण करते हो मनुज शेप,
महिमा का कोई नहीं पाए ।
(क) ग्राम- देवता को किसका अधिक प्रकाश मिलता है और क्यों ?
(ख) 'तुम हँसो' का क्या तात्पर्य है? गाँवों के हँसने का क्या परिणाम हो सकता है?
(ग) जड़ में चेतनता का विकास कौन करता है और कैसे?
(घ) जन-मन का अधिनापक किसे कहा गया है? उसके प्रसन्न होने का क्या परिणाम होगा?
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