। (ii) मुरझाए फूल की आत्मकथा ।
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मुरझाए फूल की आत्मकथा|
मुरझाया हुआ फूल अपनी आत्मकथा सुनाता है कि मैं एक बेबस फूल हूँ | मेरी छोटी सी ज़िन्दगी है|
मेरा जन्म एक छोटे से बगीचे से हुआ| मैं बहुत छोटा था धीरे-धीरे मैं बड़ा हुआ | मैंने बहार की ज़िन्दगी देखी और और पहले मुझे बहार की दुनिया मुझे अच्छी लगी| बगीचे का मालिक मुझे पहले बहुत प्यार करता था | मैं नासमझ बहुत खुश होता है|
जब मैं बड़ा होने लगा और सब ने मुझे पूछना छोड़ दिया और पानी देना बंद कर दिया और मुझे धूप में सड़ने के लिए छोड़ दिया | अन्त में एक दिन मैं मुरझा गया | मेरी गर्दन लटक गई|
मानव का रूप तो देखो जब मेरी सुन्दरता खत्म हो गई तब मुझे बगीचे से निकाल कर फेंक दिया | यह समझ कर की अब मेरी कोई जरूरत नहीं है| मानव कितना कठोर और निर्दयी है वह मेरी कोमल पुकार को नहीं सुनना चाहता वह तो बस अपना मतलब निकलता है|
यह है मेरी आत्मकथा सब स्वार्थ और मतलब पर चलता है|
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