(ii) मनसः कति अवस्थाः सन्ति?
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भारतस्य पुनरुत्थानं भवेत्। तत्र नास्ति सन्देहः। किन्तु तत् पुनरुत्थानं जडसामर्थ्यन न, अपितु आत्मसामने अतः वस्तुतः भवद्भिः सर्वत्यागार्थं सिद्धैः भवितव्यम्। त्यागं विना किमपि महत् कार्यं न सिद्धयति। अस्माभिः कार्यं कुर्वद्भिः एव भवितव्यम्। सदा कार्यशीलैः भवितव्यम्। फलं स्वयमेव प्राप्यते। भविष्यं किं स्यात् इति न जानामि अहम्। तस्य ज्ञाने मम इच्छा अपि नास्ति। किन्तु एकं चित्रं तु मम नयनयोः स्फुटं दृश्यते।
हिन्दी-अनुवाद- भारत का पुनः उत्थान होना चाहिए। उसमें कोई सन्देह नहीं है। किन्तु वह पुनः उत्थान जड़-सामर्थ्य से नहीं अपितु आत्म-सामर्थ्य से होना चाहिए। इसलिए वास्तव में आपको सभी प्रकार से त्याग के लिए तत्पर होना चाहिए। त्याग के बिना कोई भी महान् कार्य सिद्ध नहीं होता है। हमें कार्य करते रहना चाहिए। हमेशा कार्यशील होना चाहिए। फल स्वयं ही प्राप्त होगा। भविष्य क्या होगा, यह मैं नहीं जानता हूँ। उसको जानने की मेरी इच्छा भी नहीं है। किन्तु एक चित्र तो मेरे नेत्रों में स्पष्ट दिखाई दे रहा है।
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