Hindi, asked by starstar448573, 11 months ago

ii) प्रस्तुत ! ५ ||
. क्या कटिन व्यग्य ! दीनता वेदना से अधीर,
आशा है जिनका नाम रात-दिन जपता है,
दिल्ली के वे देवता रोज़ कहते जाते,
कुछ और धरी धीरज, किम्मत अब छपती है |”
किमतें रोज छप रहीं, मगर जलधार कहाँ ?
प्यासी हरियाली सूख रही है खेतों में,
निर्धन का धन पी रहे लोभ के प्रेत छिपे,
पानी विलीन होता जाता है रेतों में |
हिल रहा देश कुन्सा के जिन आघातों से,
ये नाद तुम्हें ही नहीं सुनाई पड़ते हैं ?
निमीणों के प्रहरियों ! तुम्हें ही चोरों के काले
चेहरे क्या नहीं दिखाई पड़ते हैं ?
तो होश करो, दिल्ली के देवो, होश करो,
*)
सब दिन तो यह मोहिनी न चलनेवाली है,
होती जाती हैं गर्म दिशाओं की सॉसे,
मिट्टी फिर कोई आग उगलने वाली है।
प्रश्न -
22
1) उपर्युक्त काव्यांश में गरीबों के प्रति क्या कुटिल व्यंग्य है ?
ii) “पानी विलीन होता जाता है रेतों में - पंक्ति से क्या आशय है ?
iii) उपर्युक्त काव्यांश में कौन-सी पंक्ति परिवर्तन होने की चेतावनी दे रही है ?
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Answers

Answered by brajeshkumar111
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Answer:

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Explanation:

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