ईंधन के रूप में गोबर के उपले को क्यों हतोत्साहित करना चाहिए
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उपले या कंडे या गोइठा को गाय या भैंस के गोबर को हाथ से आकार देकर और फिर धूप में सुखाकर तैयार किया जाता है। गीले गोबर को आम तौर पर ग्रामीण महिलाएं हाथ से आकार देती हैं और यह प्रक्रिया उपले पाथना कहलाती है। सूखने के पश्चात इनका भंडारण एक गोबर और भूसे से बनी कोठरी जिसे बिटौरा कहते हैं में किया जाता है। इनका उपयोग ग्रामीण क्षेत्रों में खाना पकाने में प्रयुक्त होने वाले ईंधन के रूप में लकड़ियों के साथ या बिना लकड़ियों के किया जाता है।
उपले
उपले दो प्रकार के होते हैं, गाय के गोबर के अथवा भैंस के गोबर के । हिंदू धर्म में गाय पूजनीय होती है अत: गाय के गोबर के उपले हिंदू धर्म में बहुत ही शुभ माने गए हैं, इनसे हवन पूजन आदि कार्य करने पर अत्यंत ही शुभ फल प्राप्त होता है। ग्रहण लगने पर उपलो को द्वार और खिड़की पर रखने से घर में ग्रहण का दुष्प्रभाव नहीं होता है, एवं वातावरण में शुद्धता रहती है।
सन्दर्भ
Last edited 8 months ago by EatchaBot
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दो तिहाई से ज्यादा भारतीय परिवार खाना पकाने के लिए अब भी लकड़ियों और उपलों का इस्तेमाल करते हैं। इस वजह से घरों के भीतर जबरदस्त वायु प्रदूषण होता है। नतीजतन हर साल लाखों लोग मौत के मुंह में समा जाते हैं। इसलिए ईंधन के रूप में गोबर के उपले को क हतोत्साहित करना चाहिए
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