(ii) विपत्ति रूपी कसौटी पर कसा जाने वाला व्यक्ति ही सच्चा मित्र होता है । संस्कृत में कहावत है – “राजदरबारेश्च श्मशाने यो तिष्ठति स बांधव ।' अर्थात् राजदरबार और श्मशान घाट में साथ रहने वाला ही सच्चा मित्र होता है । सच्चा मित्र अपने स्वार्थों से ऊपर उठकर अपने मित्र को बुराई की राह पर चलने से बचाता है । वह गिरते हुए मित्र को हाथ थामकर गिरने से बचाता है । वह अपने मित्र को न तो कभी भटकने देता है और न ही सही रास्ता भूलने से देता है । सदैव उसे सही रास्ते पर चलाने की कोशिश करता है और संकट के समय उसका साथ नहीं छोड़ता । सच्चा मित्र अपना विवेक सदैव जगाए रखकर मित्र का विवेक भी जगाए रखता है।
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सही बात है । पर अब सच्चा मित्र मिलना दुर्लभ है। यह तो यही बात हो गई कि जमीन आसमान एक हो जाना ।
'संदर्भ : यह गद्यांश मित्रता के गुणों के विषय में प्रकाश डालता है। इस गद्यांश में सच्चे मित्र की गुणों को बताया गया है।
व्याख्या : लेखक कहता है कि सच्चा मित्र वही होता है, जो हमेशा संकट की घड़ी में काम आए। सुख की घड़ी में तो सच्ची मित्रता का दिखावा करने वाले अनेक लोग मिल जाते हैं, लेकिन जब दुख की घड़ी आती है तो लोग साथ छोड़ देते हैं। ऐसी स्थिति में जो सच्चा मित्र होता है, वह दुख की घड़ी में भी साथ नहीं छोड़ता।
राज दरबार और श्मशान घाट यानि सुख और दुख दोनों में साथ रहने वाला ही सच्चा मित्र होता है। एक सच्चा मित्र केवल अपने मित्र की तारीफ ही नहीं करता बल्कि उसकी कमियों से भी अवगत कराता है और उसे बुराई के मार्ग पर चलने से रोकता है।
सच्चा मित्र अपनी भटके हुए मित्र को सही राह पर दिखाता है और उसे भटकने से रोकता है। सच्चा मित्र हमेशा अपनी मित्र का भला चाहता है और उसे हमेशा उसके हित की बातें बताता है। वह किसी भी मुश्किल समय में अपने मित्र का साथ नहीं छोड़ता। सच्चा मित्र वही होता है जो अपने मित्र को सही राह दिखाएं। उसका विवेक जागृत रखें और झूठी तारीफ न करके उसे सही बातें बताये।
#SPJ3
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