Hindi, asked by premajbohara, 7 months ago

III
१)
औरों के हाथों यहाँ नहीं पलती
अपने पैरों पर खड़ी आपचलती
श्रमवारि-बिन्दुफल स्वास्थ्य-शुक्ति फलती हूँ
अपने अंचल सेव्यजनआपझलती हूँ।
नारागाहै मेरा?


Answers

Answered by ISRAELDAVID1446
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Answer:

iam not understand the question

Explanation:

please type in English

Answered by bhatiamona
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औरों के हाथों यहाँ नहीं पलती हूँ,

अपने पैरों पर खड़ी आप चलती हूँ,

श्रमवारि-बिन्दु फल स्वास्थ्य-शुक्ति फलती हूँ

अपने अचल से व्यंजन आप झलती हूँ।

संदर्भ : यह पंक्तियां ‘कुटिया में राज भवन’ नामक कविता से ली गई हैं, जिसके रचयिता कवि मैथिलीशरण गुप्त हैं। इन पंक्तियों के माध्यम से सीता ने वन में बिताए गए अपने स्वाबलंबी जीवन के विषय में बताया है।

व्याख्या : सीता अपने स्वाबलंबन के बारे में कहती हुई कह रही हैं कि वे अपने पैरों पर खड़ी हैं अर्थात वे आत्मनिर्भर हैं। वे दूसरों पर निर्भर नहीं है। वे कहती हैं कि शरीर का वास्तविक आनंद परिश्रम करने से ही प्राप्त होता है। जब वह अपने सारे कार्य स्वयं करती हैं अपने हाथों से स्वयं हवा झलती हैं। अपना खाना बनाती हैं और परिश्रम के अन्य कार्य करते हैं तो उन्हें बेहद आनंद आता है। परिश्रम में ही सच्चा आनंद है सीता का यही कहने का भाव है।

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