ईमानदारी इस विषय पर अपने विचार लिखिए
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ईमानदारी का अर्थ जीवन के सभी आयामों में एक व्यक्ति के लिए सच्चा होना है। इसके अन्तर्गत किसी से भी झूठ न बोलना, कभी किसी को भी बुरी आदतों या व्यवहार से तकलीफ नहीं देना शामिल है। ईमानदार व्यक्ति कभी भी उन गतिविधियों में शामिल नहीं होता, जो नैतिक रुप से गलत होती हैं। ईमानदारी किसी भी नियम और कानून को नहीं तोड़ती है। अनुशासित रहना, अच्छे से व्यवहार करना, सच बोलना, समयनिष्ठ होना और दूसरों की ईमानदारी से मदद करना आदि सभी लक्षण ईमानदारी में निहित होते हैं।ईमानदारी एक अच्छी आदत है, जिसमें जीवन के हरेक पहलु में सदैव सच्चाई और भरोसेमंद होना शामिल है। इसके अन्तगर्त कभी भी धोखेबाजी और जीवन में अनैतिक होना शामिल नहीं किया जाता है। यह भरोसे पर आधारित नैतिक व्यवहार है और सभी बुरे कार्यों से मुक्त होती है।
धन्यवाद
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हम सभी ईमानदारी और सच्चाई को मानव की सबसे अच्छी नीति मानते हैं मगर इसे इसी रूप में जीवन में अपनाना बेहद कठिन भी हैं. धीरे धीरे अपने आदत व चरित्र में ईमानदारी के गुण को ढालकर इसे विकसित किया जा सकता हैं. इसके अभ्यास तथा जीवन में अमल के लिए समय की आवश्यकता भी रहती हैं. हमारे जीवन में ईमानदारी का क्या महत्व हैं इसे निम्न प्रकार समझा जा सकता हैं.
दो देशों, दो पड़ोसियों यहाँ तक कि एक ही परिवार के दो सदस्यों अथवा मित्रों के बीच में रिश्ते ईमानदारी की नींव पर ही टिके रहते हैं. आपसी विशवास को पैदा करने का एक बड़ा हथियार ईमानदारी का गुण हैं. सामान्य अर्थों में ईमानदारी का अर्थ है एक इन्सान का अच्छा व सच्चा होना माना जाता हैं.
हम किसी के दिमाग को सरलता से नहीं पढ़ पाते हैं मगर जब हम किसी से व्यवहार करते है तो हमें अमुक इंसान के ईमानदार होने या न होने की पहचान होती हैं. चरित्र निर्माण के मूल तत्वों में ईमानदारी को भी गिना जाता हैं. जो व्यक्ति साफ़गोई और ईमानदारी के साथ जीवन व्यतीत करता है उसे अतिरिक्त मानसिक शांति व ख़ुशी प्राप्त होती हैं.
एक बेईमान इन्सान न केवल अपने अच्छे भविष्य के द्वार को बंध करता है बल्कि वह अपने ही कर्मों से कई नई समस्याओं को भी जन्म दे देता हैं. धोखा, मक्कारी अथवा झूठ बोलना किसी को अच्छा नहीं लगता हैं अंत में सामने वालों को उस पर क्रोध आता है तथा घ्रणा होने लगती हैं. इसके उलट ईमानदार व्यक्ति हमेशा अपने चेहरे की चमक के साथ दूसरों को प्रसन्नता देता हैं.
सत्य को इसलिए भी कडवा माना जाता है क्योंकि यह बोलने के लिए भी साहस की आवश्यकता पड़ती हैं जिस तरह देशी घी पसाने के लिए सामर्थ्य की जरूरत पड़ती हैं. बहुत से लोग डर अथवा भय के चलते ईमानदार होते है मगर उनका ईमान केवल डर तक ही बना रहता हैं. जब तक व्यक्ति अपने व्यवहार में इसे आत्मसात नहीं कर लेता है तथा स्वेच्छा से उसका पालन करने नहीं लगता है उसे ईमानदार नहीं कहा जा सकता हैं.
आज भारत ही नहीं समूची दुनियां भ्रष्टाचार की समस्या से ग्रस्त हैं. इस समस्या के मूल में ईमानदारी का अभाव होना बड़ा कारण हैं. यदि समाज में सभी लोग ईमानदार बन जाए तो ऐसी समस्याएं रातोंरात खत्म हो जाएगी. शुरू शुरू में ईमानदार बनना बेहद कठिन माना जाता है व्यक्ति को कई बार नुकसान भी उठाने पड़ते है मगर अंत में वही सुफल पाता हैं. लोगों में जिस तरह मानसिक तनाव की समस्या तेजी से बढ़ रही है उनका एक बड़ा कारण ईमानदारी को आत्मसात न करना हैं.
व्यक्ति अपने अतीत के बेईमानी के कर्मों को मन में बोझ की तरह उम्रः भर ढोता है और एक दिन मानसिक रूप से बीमार बन जाता हैं. ईमानदारी का गुण विद्यार्थी काल से बेहद जल्दी विकसित किया जा सकता हैं. इसके अभ्यास के लिए घर तथा आस पडौस के अच्छे लोगों का होना भी जरुरी हैंI