ईमानदारी का इनाम (कहानी लेखन)-
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दीनू और पीनू दो दोस्त थे। दोनों बेहद गरीब थे। होश संभालते ही उन्होंने खुद को सड़क पर पाया, लेकिन दोनों उन बच्चों से बिल्कुल अलग थे| दीनू और पीनू दो दोस्त थे। दोनों बेहद गरीब थे। होश संभालते ही उन्होंने खुद को सड़क पर पाया, लेकिन दोनों उन बच्चों से बिल्कुल अलग थे, जो अपने माता-पिता के अभाव में गलत आदतों के शिकार हो जाते हैं। दोनों की उम्र लगभग 12 साल के आसपास थी। दोनों ही अपनीमेहनत से काम कर अपनी जीविका चलाते थे। दीनू फल बेचता था और पीनू एक होटल में बैरे के साथ काम करता था। दीनू फल बेचने के साथ-साथ छठी कक्षा में पढ़ता था और पीनू पांचवीं में था। दोनों के लिए दो वक्त का खाना पीनू होटल से लाता और फल की इच्छा होने पर दीनू पीनू के साथ छक कर फल खाता।
एक दिन सर्दी का समय था। दीनू को हल्का-सा बुखार था। उस दिन पीनू ने उसे फल बेचने जाने से मना किया और खुद अपने काम पर चला गया, लेकिन कुछ देर बाद ही दीनू ने रेहड़ी लगा ली और फल बेचने लगा। दरअसल, खाली बैठने की उसकी आदत नहीं थी। उस दिन सर्दी भी पूरे जोश में थी। ठंडी हवा चल रही थी और कोहरा छाया हुआ था। दीनू ठंड में कांपता ग्राहक की आशा में इधर-उधर देख रहा था। लेकिन ऐसी सर्दी में बाहर निकलने की किसे पड़ी थी, जो दीनू से आकर फल खरीदता। आज दीनू के सारे फल ज्यों के त्यों पड़े थे। वह अपने फल समेट ही रहा था कि सूट-बूट में एक सज्जन गाड़ी से बाहर निकले। वह उसी की ओर आ रहे थे। यह देख दीनू के चेहरे पर चमक आ गई। उसे लगा कि इतनी ठंड में भी उसका फल बेचने का प्रयास निष्फल नहीं गया। वह सज्जन दीनू के करीब आए और बड़े ही विनम्र स्वर में बोले, 'बेटा, मैं आज यहां पहली बार आया हूं। मेरा नजदीक के थाने में ट्रांसफर हुआ है। क्या तुम मुझे वहां का रास्ता बता सकते हो।' दीनू यह सुनकर निराश हो गया। फिर भी उसने बड़ी तहजीब से उन सज्जन को थाने का मार्ग बताया। जैसे ही सज्जन जाने लगे कि सहसा मुड़कर बोले, 'धन्यवाद बेटा, दीनू मुसकरा दिया। जाते हुए सज्जन बोले, 'बेटा, लगता है मेरी बातों से तुम्हें निराशा हुई है। शायद तुम मुझसे कुछ और ही अपेक्षा कर रहे थे।' इस पर दीनू बोल पड़ा 'हां साहब, मैं सोच रहा था कि आप मुझसे फल खरीदने आ रहे हैं।' 'ठीक है, तो तुम मुझे कुछ फल दे दो।' दीनू ने उन्हें एक-एक किलो फल तौल कर दिए। सज्जन ने अपना पर्स खोला, तो उसमें केवल सौ-सौ रुपए के नोट रखे हुए थे। सज्जन ने कहा, 'बेटा, मेरे पास खुले पैसे नहीं हैं।' इस पर दीनू बोला, 'साहब आप दो मिनट यहां रुकिए, मैं अभी खुले पैसे लेकर आता हूं।' यह कहकर वह वहां से फुर्ती से दौड़ पड़ा, लेकिन जब दस मिनट बाद भी वह लौट कर नहीं आया तो सज्जन वहां से चले गए।
शाम के करीब चार बजे थाने में शोरगुल सुनकर कमिश्नर बाहर आए तो देखा कि एक गरीब लड़का, थाने में घुसने की कोशिश कर रहा था। उन्होंने सिपाहियों को डांटा और शोरगुल का कारण पूछा। वे कुछ बताते कि इससे पहले ही लड़का बोला, 'साहब नाम मेरा पीनू है। मेरे दोस्त दीनू ने यहां नए आए एक साहब को फल बेचे थे। लेकिन उनके पास सौ रुपए का नोट था, जिसे दीनू ने उन्हें रुककर खुलवाने को कहा था। जब वह तेजी से जा रहा था, तभी उसका एक्सीडेंट हो गया। वह नजदीक के ही एक सरकारी अस्पताल में दाखिल है। होश आते ही उसने मुझे साहब के बाकी रुपए लौटाने के लिए कहा। मैं साहब के वही रुपए लौटाने आया हूं।' पीनू की इन बातों को सुनकर कमिश्नर काफी आश्चर्यचकित हुए। उन्होंने तुरंत सबको डांट लगाई और खुद गाड़ी में पीनू के साथ चल पड़े। अस्पताल पहुंचने पर उन्होंने दीनू को पट्टियों में लिपटा हुआ पाया। दीनू उन्हें दखते ही पहचान गया और धीमे स्वर में बोला, 'पीनू यही वह साहब हैं, जिनके रुपए मुझे लौटाने थे।' इस पर कमिश्नर बोले, 'बेटा तुम्हारी ईमानदारी ने मुझे अंदर तक झकझोर दिया है। मुझे प्रसन्नता है कि हमारे देश की भावी पीढ़ी अभावों में भी ईमानदारी के साथ कुछ कर गुजरने की तमन्ना रखती है। आज से मैं तुम दोनों की जिम्मेदारी अपने ऊपर लेता हूं।' कमिश्नर की इस बात पर दीनू और पीनू दोनों मुस्कुरा दिए।