Hindi, asked by 2066vanshrathee, 6 months ago

। ईर्ष्या का अनोखा वरदान क्या है?

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Answered by Anonymous
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「ईर्ष्या का अनोखा वरदान यह है कि ईष्र्यालु व्यक्ति उन वस्तुओं से आनन्द नहीं उठाता जो उसके पास हैं, वरन् वह उन वस्तुओं से दु:ख उठाता है, जो दूसरों के पास हैं। ईष्र्यालु व्यक्ति को ईर्ष्या के कारण उन वस्तुओं से आनन्द नहीं मिलता जो उसके पास हैं वरन् वह उन वस्तुओं से दु:ख उठाता है, जो दूसरों के पास हैं।」♡

Answered by Vibes51
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‎ ‎ ‎ ‎ ‎‎‎‎‎‎ ईर्षा

ईर्षा का अनोखा वरदान है | ईर्षा का काम है जलना | जिस मनुष्य के हृदय में ईर्ष्या घर बना लेती है, वह उन चीजों से आनंद नहीं उठाता, जो उसके पास मौजूद हैं बल्कि उन वस्तुओं से दुख उठाता है, जो दूसरों के पास हैं। वह अपनी तुलना दूसरों के साथ करता है | और इस तुलना में अपने पक्ष के सभी अभाव उसके हृदय पर दन्श मारते रहते है। दन्श के इस दाह को भोगना कोई अच्छी बात नहीं है। मगर ईर्ष्यालु मनुष्य करे भी तो क्या? आदत से लाचार होकर उसे यह वेदना भोगनी पड़ती है | एक उपवन को पाकर भगवान को धन्यवाद देते हुए उसका आनंद नहीं लेना और बराबर इस चिंता में निमग्न रहना कि इससे भी बड़ा उपवन क्यों नहीं मिला, एक ऐसा दोष है जिससे ईर्ष्या व्यक्ति का चरित्र भी भयंकर हो उठता है। अपने अभाव पर दिन-रात सोचते सोचते वह सृष्टि को प्रक्रिया को भूलकर विनाश में लग जाता है और अपनी उन्नति के लिए उध्यम करना छोड़कर वह दूसरों को हानि पहुंचाने को ही अपना श्रेष्ठ कर्तव्य समझने लगता है | ईर्षा की बड़ी बेटी का नाम निंदा है। जो व्यक्ति ईर्ष्यालु होता है, वही व्यक्ति बुरे किस्म का निंदक भी होता है। दूसरों की निंदा वह इसलिए करता है कि इस प्रकार दूसरे लोग जनता अथवा मित्रों को आँखों से गिर जाएँगे और तब तक जो स्थान रिक्त होगा उस पर अनायास में ही बिठा दिया जाऊँगा। मगर ऐसा न आज तक हुआ है और न आगे होगा। दूसरों को गिराने की कोशिश तो अपने को बढ़ाने की कोशिश नहीं कही जा सकती। एक बात और है कि संसार में कोई भी मनुष्य निंदा से नहीं गिरता। उसके पतन का कारण अपने ही भीतर के सद्गुणों का ह्रास होता है। इसी प्रकार कोई भी मनुष्य दूसरों की निंदा करने से अपनी उन्नति नहीं कर सकता। उन्नति तो उसकी तभी होगी जब वह अपने चरित्र को निर्मल बनाए तथा अपने गुणों का विकास करे।

Explanation:

मुझे उम्मीद है यह मदद करेगा !

धन्यवाद

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