ईर्ष्या से जला भुना आदमी चलती फिरती गठरी के समान है कैसे ?
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koi bhi usme kabhi bhi aag laga sakta h
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ईष्र्यालु मनुष्य दूसरों की अच्छाइयों तथा उपलब्धियों को देखकर जलते हैं। उनको अपने पास की चीजों में आनन्द नहीं आता है। वे ईर्ष्या की आग में स्वयं ही जलते हैं। ईर्ष्यालु मनुष्य विष की चलती-फिरती गठरी के समान होते हैं तथा पूरे समाज को प्रदूषित करते हैं।
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