Hindi, asked by ritu1234536, 4 months ago

ईर्ष्या : तू न गई मेरे मन से
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Answered by vivekyadavka203
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Answer = ईर्ष्या तू न गयी मेरे मन से का सारांश - रामधारी सिंह दिनकर ... ईर्ष्या मनुष्य को यही विचित्र वरदान देती है जिसमें मनुष्य बिना दु:ख के दु:ख भोगता है। जिस व्यक्ति के मन में ईर्ष्या वास करने लगती है, वह उन चीजों का आनंद नहीं ले पाता जो उसके पास होती है वरन् उन वस्तुओं के लिए दु:ख उठाता है जो दूसरे व्यक्तियों के पास होती हैं।

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