ईश्वर भक्ति ने कबीर के अहंकार को दूर कर दिया। आप इस दोहे को पढ़कर क्या समझे है ? अपने विचार लिखिए। 'जब में था तव हरि नहीं अद हरि है में नौहि। सव औधियारा मिटि गया जव दीपक देख्या मौहि ॥'
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जब तक मन में अहंकार था तब तक ईश्वर का साक्षात्कार न हुआ, जब अहंकार समाप्त हुआ तभी प्रभु मिले | जब ईश्वर का साक्षात्कार हुआ, तब अहंकार स्वत: ही नष्ट हो गया। ईश्वर की सत्ता का बोध तभी हुआ।
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