Hindi, asked by tarnnumakhter, 7 months ago

ईश्वर एक द्वार बंद करता है तो दूसरा खोल देता है लेकिन हम उस बंद दरवाजे की ओर टकटकी लगाए बैठे रहते हैं दूसरे खुले द्वार की ओर हमारी दृष्टि ही नहीं जाती इसकी व्याख्या बताइए

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Answered by sanya2004srivastav
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Answer:

Explanation:

एक रोज मुझे अपने मोबाइल पर एक एसएमएस मिला, जिसका मतलब था- आज की गलतियां कल अनुभव का गुलदस्ता बनकर सामने आती हैं। फिर कुछ दिन बाद एक और एसएमएस आया, जिसमें लिखा था- अनुभव से आप गलतियों को पहचानते हैं, ताकि उन्हें दोहरा न सकें। मोबाइल पर आने वाले ऐसे एसएमएस कई बार बड़ी बातें कह जाते हैं। उस एसएमएस में सच लिखा था कि अपने सही या गलत फैसलों को कभी कोसना नहीं चाहिए, क्योंकि सही फैसले जीत और खुशी बरसाते हैं, लेकिन गलत फैसले भी बेकार नहीं जाते, वे हमें कुछ अनुभव देकर ही जाते हैं। दोनों की जिंदगी में अहम भूमिका है। जरा बांसुरी को गौर से देखिए। खोखली है, छेददार है, फिर भी अपनी मधुर आवाज़ से दिल जीत लेती है। बांसुरी के छोटे-छोटे सुराखों जैसी ही होती हैं ज़िंदगी की छोटी-छोटी गलतियां। बिल क्लिंटन जब संकट में थे, तब उन्होंने अपने कुछ पत्रकार मित्रों से कहा था कि अगर आप करियर की लम्बी पारी खेलते हैं, तो गलतियां तो होंगी हीं। तय है कि कोई भी इंसान महामानव नहीं है, अत: गलतियां तो होंगी ही। हाथ पर हाथ धरे निठल्ले बैठने से कहीं बेहतर है गलतियां करना। हर इंसान को मनचाहा करने की आजादी जरूरी है, पर तभी, जब वह उन गलतियों से सीखता भी जाए। कम से कम अफसोस न रहे कि ऐसा नहीं किया, वैसा नहीं किया। सफलता-असफलता की संभावनाएं हर क्षेत्र में आधी-आधी रहती हैं। अगर कोशिश ही नहीं करेंगे, तो जीत की आधी आस यूं ही जाती रहेगी। बचपन में महात्मा गांधी से भी गलती, चूक या भूल हुई थी। लेकिन दुनिया महात्मा गांधी को उनकी गलतियों की वजह से नहीं, बल्कि उनके अपनी गलतियों से सीखने के प्रयोगों के कारण एक महानायक के रूप में जानती है। उन्होंने बचपन की गलतियों का सुधार किया, निरन्तर आगे बढ़ते गए और महानायक बन कर उभरे। एक वाकया है कि बचपन में मोहनदास पढ़ाई कर रहे थे। उनके एक भाई ने आकर कहा, मुझ पर 25 रुपये उधार चढ़ गए हैं। कर्जा चुकाना है, मेरी मदद करो। नन्हे गांधी के पास तो इतने रुपये थे नहीं। सो, देते कहां से? अंतत: उन्हें एक तरकीब सूझी। रात के वक्त उन्होंने अपने दूसरे भाई के बाजूबंद से जरा सा सोना उतार लिया। सुबह सुनार को बेचकर 25 रुपये लाकर दे दिए। इस तरह भाई तो कर्ज मुक्त हो गया, लेकिन चोरी करने के कारण उनका अपना दिल दबा-दबा सा रहने लगा। वे बेचैन हो गए। उनसे रहा नहीं गया। उन्होंने अपने पिता करमचंद गांधी के नाम खत लिखा और आहिस्ता से उन्हें थमा दिया। खुद बगल के पलंग पर गुमसुम बैठ गए। पिता बेटे का खत पढ़ कर भावविह्वल हो उठे। खत में मोहनदास ने अपनी गलती कबूल की थी, सदा ईमानदारी के रास्ते पर चलने का व्रत लिया था और पिता से कठोर से कठोर दंड देने का आग्रह किया था। चूंकि इंसानी स्वभाव है गलतियां करना, तो फिर गलतियों से क्या घबराना? हर कामयाब शख्स पहले गलतियां करता है, गिरता है, फिर बुलंदी छूता है। ईश्वर जब भी एक दरवाजा बंद करता है, तो दूसरा जरूर खोल देता है। गलतियों के मलाल से बाहर निकलने का मंत्र सब्र में छुपा है। बुलंदियों को छूने वाला गलतियां करता है। अत: अपनी गलतियों से सीखने की आदत डालिए। आप हार कर ज्यादा ताकतवर बन कर उभरते हैं। आप अपनी हार पर मलाल करते रहने की बजाय नए कारगर तरीके से तैयारी करें। अपनी गलती महसूस होने पर बेशक मन में शिथिलता और खिन्नता पैदा होती है। फिर भी, ज्ञानी बताते हैं कि गलतियों पर मलाल छोडि़ए, आत्ममंथन कीजिए और आगे बढि़ए। क्योंकि ज़िंदगी की शाम को जब कोई पीछे मुड़ कर देखता है तो उसे अपने गलत कदम चलने का अफसोस नहीं होता, पर उस मुकाम तक पहुँच पाने का संतोष जरूर होता है।

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