ईश्वरै: गुणै:" अत्र विशेष्यपदम् किम्
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Explanation:
समस्त कार्य? करण और विषयोंके आकारमें परिणत हुई त्रिगुणात्मिका प्रकृति पुरुषके लिये भोग और अपवर्गका सम्पादन करनेके निमित्त देहइन्द्रियादिके आकारसे संहत ( मूर्तिमान् ) होती है? वह संघात ही यह शरीर है? उसका वर्णन करनेके लिये श्रीभगवान् बोले --, इदम् इस सर्वनामसे कही हुई वस्तुको शरीरम् इस विशेषणसे स्पष्ट करते हैं। हे कुन्तीपुत्र शरीरको चोट आदिसे बचाया जाता है इसलिये? या यह शनैःशनैः क्षीण -- नष्ट होता रहता है इसलिये? अथवा क्षेत्रके समान इसमें कर्मफल प्राप्त होते हैं इसलिये? यह शरीर क्षेत्र है इस प्रकार कहा जाता है। यहाँ इति शब्द एवम् शब्दके अर्थमें है। इस शरीररूप क्षेत्रको जो जानता है -- चरणोंसे लेकर मस्तकपर्यन्त ( इस शरीरको ) जो ज्ञानसे प्रत्यक्ष करता है अर्थात् स्वाभाविक या उपदेशद्वारा प्राप्त अनुभवसे विभागपूर्वक स्पष्ट जानता है उस जाननेवालेको क्षेत्रज्ञ कहते हैं। यहाँ भी इति शब्द पहलेकी भाँति एवम् शब्दके अर्थमें ही है? अतः क्षेत्रज्ञ ऐसा कहते हैं। कौन कहते हैं उनको जाननेवाले अर्थात् उन क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ दोनोंको जो जानते हैं वे ज्ञानी पुरुष ( कहते हैं )।
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72 = 72
96 = 96
first 69 and second 27 = 6927
58 × 87 = 58 × 85.
87 × 78
first 78 and second 85 = 7885
then. 79 × 86
•°• ANSWER = 6897
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