ईश्वर ज्ञान द्वारा अपने शरीर से क्या निकसित हो जाता है
Answers
Answered by
2
Answer:
वेद एवं वैदिक ग्रन्थों का अध्ययन करने पर ईश्वर, जीवात्मा व प्रकृति का स्वरूप स्पष्ट होता है। ईश्वर इस संसार का रचयिता है। उसने जीवात्माओं के सुख व कर्म-फल भोग के लिए सूक्ष्म जड़ प्रकृति से इस सृष्टि को रचा है। हमारी यह सृष्टि अनन्त है। इसमें अनन्त सूर्य, चन्द्र, पृथिव्यां एवं ग्रह उपग्रह हैं। वैज्ञानिक सृष्टि में केवल सूर्यों की संख्या ही 4000 लाख व इससे अधिक मानते हैं। यह सृष्टि इतनी विशाल इसलिए भी है कि सृष्टि में जीवात्माओं की संख्या अनन्त है। उनके निवास व सुख भोग के लिए ईश्वर को इतना विशाल संसार बनाना पड़ा। त्रिगुणात्मक प्रकृति के ब्रह्माण्ड में उपलब्ध सभी सूक्ष्म परमाणुओं को घनीभूत करने पर इतना विशाल बना है। शायद ब्रह्माण्ड की अनन्त जीवात्माओं को ब्रह्माण्ड के सभी सौर्य मण्डलों पर बसाने के लिए ईश्वर ने मनुष्यादि सृष्टि रची है। यह समस्त ब्रह्माण्ड वा सृष्टि ईश्वर ने सभी जीवात्माओं के सुख आदि फलभोग के लिए ही रची है। इसी लिए सृष्टि की रचना के बाद ईश्वर ने सृष्टि में मनुष्यों के लिए आवश्यक अग्नि, वायु, जल आदि पदार्थ बनाकर वनस्पतियों आदि को बनाया और फिर मनुष्यादि प्राणियों की उत्पन्न किया। मनुष्य क्या है? इसका एक उत्तर यह भी हो सकता है मनुष्य जीवात्मा एवं पृथिवी के तत्वों से बना हुआ एक शरीर का संयुक्त रूप है जिससे जीवात्मा शरीर में रहकर अपने पूर्व कर्मों के फलों का भोग करता है। यह शरीर भी विज्ञान के नियमों के अनुसार काम करता है। अतः ईश्वर का बनाया शरीर यह संकेत भी करता है कि ईश्वर एक श्रेष्ठतम वैज्ञानिक भी है। परमात्मा ने जीवात्मा के सुख की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर मनुष्य शरीर में आंख, कान, नाक, मुंह, रसना व त्वचा आदि इन्द्रिय बनाये हैं व इनके विषय रूप, शब्द, गंध, रस एवं स्पर्श को भी रचा है। परमात्मा ने इस शरीर में पांच कर्म इन्द्रियों की रचना भी की है जिससे मनुष्य नाना प्रकार के कर्म करते हुए सुख भोग में इनकी सहायता लेता है।
Explanation:
plz like my All answer
Similar questions
English,
2 months ago
Physics,
2 months ago
Science,
4 months ago
Accountancy,
9 months ago
Biology,
9 months ago