Hindi, asked by sakshigupta100, 4 months ago

ईश्वर को जानने के लिए अपने आप को पहचानना क्यों अनिवार्य है​

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Answered by chintamanbhamre000
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Answer:

भगत सिंह का जिक्र सब करते हैं. तमाम पंथों वाले. अपने हिसाब से. किसी को विचार दिखते हैं, कोई उनके हाथ में बंदूक बस देख पाता है. धर्म के नाम पर भरे बैठे भी भगत सिंह को अपना आदर्श बताते हैं. ये जाने बिना कि वो हाथ में बंदूक लेने के अलावा भी बहुत कुछ कह गए हैं. ये जाने बिना कि वो नास्तिक थे. नास्तिक आपके धर्म के खिलाफ नहीं होते. नास्तिकता क्या है. आप यहां से जान सकते हैं. ये एक प्रतिनिधि पत्र है, जिससे आपको नास्तिकता का मोटा-मोटी हिसाब लग जाता है. पाकिस्तान में ईशनिंदा कानून है. आप धर्म के खिलाफ कुछ बोलो-लिखो या करो तो जेल हो जाती है. हिंदुस्तान में ऐसा कुछ नहीं है. बेहतर है. लेकिन आस्तिकों और नास्तिकों में कनफ्लिक्ट तो चलते ही हैं.

‘मैं नास्तिक क्यों हूं’ का जिक्र अक्सर होता है. भगत सिंह ने जेल में रहते हुए इसे लिखा था. तब 27 सितम्बर 1931 को लाहौर के ‘द पीपल’ अखबार में ये छपा था. इस आर्टिकल में भगत सिंह ने ईश्वर की उपस्थिति पर अनेक लॉजिकल सवाल उठाए थे.भगत सिंह ने ये आर्टिकल तब लिखा था जब भगवान को मानने वाले एक दूसरे स्वतंत्रता सेनानी बाबा रणधीर सिंह ने उनकी नास्तिकता की वजह उनकी पॉपुलरिटी को बताया था. उसी बात के जवाब में भगत सिंह ने ये लेख लिखा था.

मैं नास्तिक क्यों हूं

एक नया प्रश्न उठ खड़ा हुआ है. क्या मैं किसी अहंकार के कारण सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापी और सर्वज्ञानी ईश्वर के अस्तित्व पर विश्वास नहीं करता हूं? मेरे कुछ दोस्त, शायद ऐसा कहकर मैं उन पर बहुत अधिकार नहीं जमा रहा हूं. मेरे साथ अपने थोड़े से सम्पर्क में इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिये उत्सुक हैं कि मैं ईश्वर के अस्तित्व को नकार कर कुछ ज़रूरत से ज़्यादा आगे जा रहा हूं और मेरे घमण्ड ने कुछ हद तक मुझे इस अविश्वास के लिये उकसाया है.

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