Hindi, asked by bansalrajat973, 8 months ago

ईश्वर के प्रति आस्था के महत्व(in hindi)​

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Answered by avaniaarna
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श्राद्ध श्रद्धा का दूसरा स्वरूप है, जिसकी मान्यता केवल भारत में ही है। भारतीय पुनर्जन्म में विश्वास रखते हैं, जिसका सीधा सा अर्थ यह है कि आत्मा अजर, अमर और शाश्वत है। जो पूर्वज परिवारों को छोड़कर स्वर्गवासी हो गये, उनकी स्मृति का पर्व है श्राद्धपर्व। अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा का पर्व है श्राद्ध। यह पर्व नई पीढ़ी के लिये अत्यन्त आवश्यक है जो बच्चे पश्चिमी विचारधारा से प्रभावित होकर इस परम्परा का कई बार उपहास उड़ाते हैं। वह यह नहीं जानते कि श्राद्ध वास्तव में पूर्वजों की पुण्यस्मृति का पर्व है। उनके संस्मरणों के पुनः स्मरण और संस्कारों के अनुपालन-अनुशीलन का पर्व है। पूर्वज जो विरासत छोड़कर गये हैं, उसे संजोने का पर्व है श्राद्ध पर्व। श्रद्धा और आस्था के इस पर्व को भारत में बड़े आदर व सम्मान के साथ पालन किया जाता है। इसकी विशेष विधि है, जो इस प्रकार है|

हम किसी भी तीर्थ स्थान, किसी भी पवित्र नदी, किसी भी पवित्र संगम पर नहीं जा पा रहे हैं तो निम्नांकित सरल एवं संक्षिप्त कर्म घर पर ही अवश्य करें। दूध में पकाए हुए चावल में शक्कर एवं सुगंधित द्रव्य जैसे इलायची, केसर मिलाकर तैयार की गई सामग्री को खीर कहते हैं बनाकर तैयार कर लें। गाय के गोबर के कंडे को जलाकर पूर्ण प्रज्ज्वलित कर लें। उक्त प्रज्ज्वलित कंडे को शुद्ध स्थान में किसी बर्तन में रखकर, खीर से तीन आहुति दे दें। इसके नजदीक जल का भरा हुआ एक गिलास रख दें अथवा लोटा रख दें। इस द्रव्य को अगले दिन किसी वृक्ष की जड़ में डाल दें।

भोजन में से सर्वप्रथम गाय, काले कुत्ते और कौए के लिए ग्रास अलग से निकालकर उन्हें खिला दें। इसके पश्चात् ब्राह्मण को भोजन कराएं फिर स्वयं भोजन ग्रहण करें। पश्चात् ब्राह्मणों को यथायोग्य दक्षिणा दें।

विश्व जागृति मिशन के संस्थापक परमपूज्य श्री सुधांशु जी महाराज अपने पूर्वज-पितरों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करते हुए उनकी मृत्यु तिथि पर श्रद्धा से श्राद्ध-तर्पण करने के लिए प्रेरित करते हैं। साथ ही महाराजश्री का कहना है कि हम अपने पूर्वजों का जो इस संसार में नहीं रहे उनका श्राद्ध तो जरूर मनायें, लेकिन जो जीवित माता-पिता हैं उनके प्रति श्रद्धा रखें, उनकी सेवा और सम्मान करें। इसी भावना से पूज्य महाराजश्री ने वर्ष 1997 में 2 अक्टूबर को माता-पिता और बुजुर्ग-वरिष्ठ नागरिकों के सम्मान में श्रद्धापर्व का शुभारम्भ किया। जिसे देश से लेकर विदेश तक मिशन की सभी शाखाओं में बड़े श्रद्धा-सम्मान से मनाया जाता है। श्रद्धापर्व पर समाज, राष्ट्र को अपनी विशेष सेवायें देकर जनकल्याण एवं राष्ट्रहित के कार्य करने वाले समाज के अतिविशिष्ट जनों को महाराजश्री के सान्निध्य में विश्व जागृति मिशन द्वारा प्रत्येक वर्ष 2 अक्टूबर को सम्मानित भी किया जाता है। विगत 22 वर्षों में 200 से अधिक देश के अतिविशिष्ट नागरिकों को मिशन द्वारा सम्मानित किया जा चुका है।

Answered by vtogethernarol
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