Hindi, asked by gilly19, 3 months ago


ईश्वर की सर्वव्यापकता के सम्बन्ध में रैदास ने क्या कहा है ?
pls tell answer ​

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Answered by IIMrMartianII
37

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Heya Here's the required Answer mate

  • ईश्वर सर्वव्यापक है,बड़ा ही सरल अर्थ है कि ईश्वर सब स्थान में विद्यमान है।समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग मूर्ति पूजा करता है, उनकी मान्यता का आधार भी यही है कि ईश्वर मूर्ति में भी विद्यमान है।सर्वव्यापक पर चर्चा हो रही थी तो एक बंधु ने प्रश्न उठाया कि आप लोग मूर्ति पूजा का विरोध क्यों करते हैं जबकि सर्वव्यापक होने से ईश्वर मूर्ति में भी है, यह तो सच है ही कि मूर्ति में भी ईश्वर विद्यमान है, इस सत्य से कोई भी व्यक्ति जो थोड़ा सा भी आर्य समाज से सम्पर्क रखता है,विरोध नहीं कर सकता और न ही करेगा। विरोध तो इस बात का है कि मूर्ति ईश्वर नहीं है।सुनने में और समझने में बड़ा ही अटपटा सा लगता है कि मूर्ति में ईश्वर है पर मूर्ति ईश्वर नहीं है।इसे स्थूल दृष्टान्त द्वारा समझने में सुविधा होगी -घड़े में जल है,जल घड़ा नहीं है,अलमारी में सामान है, सामान अलमारी नहीं है, तपते लोहे में अग्नि है, अग्नि लोहा नहीं है, ठीक इसी प्रकार मूर्ति में ईश्वर है परन्तु मूर्ति ईश्वर नहीं है।इस प्रकार के संबंधों को व्यापक - व्याप्य संबंध कहा गया है।जगत में ऐसा कोई भी पदार्थ नहीं है जिसमें व्यापक- व्याप्य संबंध न हो।ईश्वर व्यापक है और समस्त ब्रह्माण्ड व्याप्य इस प्रकार है जैसे लोटा नदी में डुबा है, जल लोटे के भीतर भी है और बाहर भी है।व्यापक और व्याप्य संबंध को न समझना सबसे बड़ी अज्ञानता है।मूर्ति में ईश्वर की व्यापकता को स्वीकार करते हैं, मिथ्या प्राण-प्रतिष्ठा करते हैं और मंदिर में उसे प्रतिष्ठित कर देते हैं,मंदिर एक पवित्र स्थान बन जाता है, यहाँ पाप कर्म करने का निषेध है,इस प्रकार सर्वव्यापक ईश्वर से स्थान व काल की दूरी बना लेते हैं।यह अज्ञानता, स्वार्थ और दुष्ट बुद्धि भावना है।इस भावना से दुकानदार व कई अन्य व्यवसायी भी अछूते नहीं है, दुकानों मे भी छोटे-छोटे मंदिर बना रखे हैं और प्रात:जब दुकान खोलते हैं, तब सर्वप्रथम मूर्ति के सामने दीप व अगरबत्ती जलाते हैं, मूर्ति को नमस्कार करके अपना ग्राहकों के साथ झूठ और छल- कपट का व्यापार-धंधा प्रारंभ करते हैं।

Hope it helps dear

Answered by IIMrMartianII
32

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Heya Here's the required Answer mate

  • ईश्वर सर्वव्यापक है,बड़ा ही सरल अर्थ है कि ईश्वर सब स्थान में विद्यमान है।समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग मूर्ति पूजा करता है, उनकी मान्यता का आधार भी यही है कि ईश्वर मूर्ति में भी विद्यमान है।सर्वव्यापक पर चर्चा हो रही थी तो एक बंधु ने प्रश्न उठाया कि आप लोग मूर्ति पूजा का विरोध क्यों करते हैं जबकि सर्वव्यापक होने से ईश्वर मूर्ति में भी है, यह तो सच है ही कि मूर्ति में भी ईश्वर विद्यमान है, इस सत्य से कोई भी व्यक्ति जो थोड़ा सा भी आर्य समाज से सम्पर्क रखता है,विरोध नहीं कर सकता और न ही करेगा। विरोध तो इस बात का है कि मूर्ति ईश्वर नहीं है।सुनने में और समझने में बड़ा ही अटपटा सा लगता है कि मूर्ति में ईश्वर है पर मूर्ति ईश्वर नहीं है।इसे स्थूल दृष्टान्त द्वारा समझने में सुविधा होगी -घड़े में जल है,जल घड़ा नहीं है,अलमारी में सामान है, सामान अलमारी नहीं है, तपते लोहे में अग्नि है, अग्नि लोहा नहीं है, ठीक इसी प्रकार मूर्ति में ईश्वर है परन्तु मूर्ति ईश्वर नहीं है।इस प्रकार के संबंधों को व्यापक - व्याप्य संबंध कहा गया है।जगत में ऐसा कोई भी पदार्थ नहीं है जिसमें व्यापक- व्याप्य संबंध न हो।ईश्वर व्यापक है और समस्त ब्रह्माण्ड व्याप्य इस प्रकार है जैसे लोटा नदी में डुबा है, जल लोटे के भीतर भी है और बाहर भी है।व्यापक और व्याप्य संबंध को न समझना सबसे बड़ी अज्ञानता है।मूर्ति में ईश्वर की व्यापकता को स्वीकार करते हैं, मिथ्या प्राण-प्रतिष्ठा करते हैं और मंदिर में उसे प्रतिष्ठित कर देते हैं,मंदिर एक पवित्र स्थान बन जाता है, यहाँ पाप कर्म करने का निषेध है,इस प्रकार सर्वव्यापक ईश्वर से स्थान व काल की दूरी बना लेते हैं।यह अज्ञानता, स्वार्थ और दुष्ट बुद्धि भावना है।इस भावना से दुकानदार व कई अन्य व्यवसायी भी अछूते नहीं है, दुकानों मे भी छोटे-छोटे मंदिर बना रखे हैं और प्रात:जब दुकान खोलते हैं, तब सर्वप्रथम मूर्ति के सामने दीप व अगरबत्ती जलाते हैं, मूर्ति को नमस्कार करके अपना ग्राहकों के साथ झूठ और छल- कपट का व्यापार-धंधा प्रारंभ करते हैं।

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