Hindi, asked by punamdeviprince, 9 months ago

ईश्वर ने मनुष्य को सर्वोत्तम कृति के रूप में रचा है । कवि के अनुसार मनुष्य वस्तुत: एक ही ईश्वर की संतान है, उसे खेमों में बाँटना उचित नहीं है । इस क्रम में उन्होंने किन उदाहरणों का प्रयोग किया है?​

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Answered by shashid394
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Answer:

ईश्वर ने संसार की रचना की। मनुष्य, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे, फूल-पत्ती, सागर-सरोवर-सरिता और भी न जाने क्या-क्या बनाया। उनके रूप भिन्न -भिन्न हैं, गुण भिन्न-भिन्न हैं। ईश्वर के रचे इस अद्भुत संसार में प्रत्येक वस्तु का अपना एक विशिष्ट गुण है। तुलसी दास जी ने भी कहा है-

अमिय सराहिय अमरता, गरल सराहिय मीचु।

युवती अलंकृत वेश में सुंदर लगती है, शिशु नंगे रूप में भी प्यारा लगता है। सिंह की प्रचंड शक्ति उसकी सुंदरता है, हाथी की सुंदरता उसकी विशालता है। मृग की सुंदर चितवन व लंबी छलांग उसकी सुंदरता है, तो कुत्ते की स्वामिभक्ति उसे सुंदर बनाती है। पक्षी प्रातः सांय क्रमशः स्वागत और विदाई गीत सुनाते हैं, तो झींगुर छिपकर झंकार करता है। नाचते मयूर को देखकर भला कौन नहीं मुग्ध होता? चकोर केवल चंद्रमा को देख कर जीता है, तो चातक स्वाति नक्षत्र का ही जल बूंद ग्रहण करता है। जाल रचना करने की कला मकड़ी की तरह किसी में भी नहीं। घोंघा जहां जाता है, अपना घर साथ ले जाता है और पतंगा दीपक के प्यार में अपने को मिटा देता है। विचित्र जीव-जंतुओं के शरणदाता घने वन अपनी सघन हरीतिमा के कारण सुंदर दिखते हैं, तो विशाल पेड़ों से लिपटी लताएं अपने प्रेम का परिचय देती हैं। किलोल करती नदियां, निर्भय बहते झरने, शांत सरोवर मानो सुंदरता का द्रवित रूप हैं।

इन सारी सुंदरता, विविधता का चयन मानव ने ही किया, ईश्वर की बनाई सुंदरता को सुंदर मानव ने ही तो किया। प्रकृति कहां जानती है, मैं कितनी सुंदर हूं? ईश्वर की सृष्टि के सौदंर्य पर मुग्ध होने वाला मनुष्य ही है। इस बिखरी सुंदरता को सहेजने वाला प्राणी पंच ज्ञानेन्द्रियों वाला मनुष्य ही तो है। मनुष्य ने सुंदरता, मधुरता का पता लगाया। सौंदर्यबोध् की विशेषता केवल मनुष्य में है, अतः वह ईश्वर की सुंदरतम रचना है। प्रकृति की सुंदरता भोग्य है, मनुष्य भोक्ता है, अन्वेषक है। मानव की भावनाएं उसे ऊँचा बनाती हैं, उसमें बुद्धि, प्रज्ञा, प्रतिभा और कल्पना शक्ति है। इनके द्वारा उसने भौतिक और आध्यात्मिक शक्ति का उपार्जन कर अपनी दुर्बलता को दूर किया और अपनी आवश्यकता की पूर्ति की। उसने प्रत्यक्ष के साथ-साथ परोक्ष सत्य और सौंदर्य का भी पता लगाया। और तो और, ईश्वर को ईश्वर, परमात्मा बनाने वाला भी मनुष्य है, निराकार को साकार मनुष्य ने बनाया, विविध प्रमाणों से उसके अस्तित्व को सिद्ध किया। परमात्मा की कीर्तिपताका मानव ही है। उसने ईश्वर के चरित्र, गुण, शक्ति तथा संदेश को भाषाबद्ध एवं लिपिबद्ध किया है। मनुष्य ही उपकार, उत्सर्ग, प्रेम श्रध्दा, सेवा इत्यादि पारमार्थिक वृत्तियों में कुशल है। ईश्वर ने मानव की रचना में अपनी समस्त कला लगा दी, अतः उसकी सुन्दरतम् रचना है मानव।

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