India Languages, asked by iamsaurabhc9351, 9 months ago

ईश्वरस्य स्वगुरुजनानां च प्रियः भवितुम् भवन्तः किं करिष्यन्ति?

Answers

Answered by nikitasingh79
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ईश्वरस्य गुरुजनस्य च प्रियः भवितुम् अहं सदाचारम् आचरिष्यामि, ज्ञानार्जनम् करिष्यामि, तेषां वचनानां पालन करिष्यामि तथा सर्वविध ध्यानं करिष्यामि इति।

 

अतिरिक्त जानकारी :

प्रस्तुत प्रश्न पाठ स मे प्रियः ( वह मुझे प्यारा है) से लिया गया है। इन श्लोकों का संकलन महर्षि वेदव्यास द्वारा लिखित श्रीमद्भगवद्गीता (महाभारत का अंग) के बारहवें अध्याय से किया गया है।

इस अध्याय में भक्तियोग का विस्तृत वर्णन है। यहाँ श्रीकृष्ण ने सगुण और निर्गुण (साकार-निराकार) रूप से ईश्वर को पाने का आसान रास्ता बताया है। वास्तव में संकलित श्लोकों में प्रकट विचार आज के समाज के लिए, खासतौर पर ज्ञान-प्राप्ति की इच्छा रखने वाले छात्रों के लिए एकदम उचित एवं तर्कपूर्ण हैं। आज का मानव खुद को सब कुछ करने वाला मानकर घमंड में चूर है, बेचैन-परेशान है। वह अभ्यास और संयम को भूलकर जल्दी-से-जल्दी सारी इच्छाएँ पूरी करने की होड़ में है। इस पाठ के शीर्षक ‘स मे प्रियः' से समझ आता है कि भगवान को वे लोग प्यारे हैं जो स्वार्थ (अपना ही हित) को छोड़कर दूसरों के भले के लिए और समाज के विकास के लिए आगे बढ़ रहे हैं।

 

इस पाठ से संबंधित कुछ और प्रश्न :  

प्रदत्त पदानां प्रकृति-प्रत्यय-परिचयः देय:-

संनियम्य, समाधातुम्, आप्तुम्, सन्तुष्टः, विवर्जितः, अशक्तः, कर्तुम्, आश्रितः

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रिक्तस्थानानि पूरयत-

(क) संनियम्येन्द्रियग्राम.....

(ख) सन्तुष्टः.............योगी।

(ग) अनपेक्ष:...........दक्षः।

(घ) तेषामहं.................मृत्युसंसारसागरात्।

(ङ) शुभाशुभपरित्यागी........स मे प्रियः।

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