Political Science, asked by mohanlalchouhan09, 6 months ago

इकाई-1
(UNIT-1)
1. स्वामी विवेकानन्द के राष्ट्रवाद की अवधारणा की व्याख्या कीजिए।
Describe the concept of nationalism as propounded by
Swami Vivekananda.
अथवा
(Or)
महात्मा गांधी के सर्वोदय के विस्तार का वर्णन कीजिए।
Explain the concept of Sarvodaya of Mahatma Gandhi.
(A-55) P.T.O.​

Answers

Answered by swasti974
2

Explanation:

Can you tell me in English I am not able to understand

Answered by shailendrarprcg
2

Answer:

राष्ट्रवाद किसी देश के प्रति निष्ठा या राष्ट्रीय चेतना की भावना के रूप में परिभाषित किया जाता है। एक उस देश को अन्य देशों से ऊपर रखता है। यह मुख्य रूप से अन्य देशों या अंतरराष्ट्रीय समूहों की तुलना में अपनी राष्ट्रीय संस्कृति और हितों को बढ़ावा देने पर बल देता है।

राष्ट्रवाद पर विवेकानंद के विचार

राष्ट्रवाद पर विवेकानंद के विचार भौगोलिक या राजनीतिक या भावनात्मक एकता पर आधारित नहीं थे, न ही इस भावना पर कि ‘हम भारतीय हैं। राष्ट्रवाद पर उनके विचार गहन आध्यात्मिक थे। उनके अनुसार यह लोगों का आध्यात्मिक एकीकरण, आत्मा की आध्यात्मिक जागृति था। उन्होंने प्रचलित विविधता को विभिन्न आधारों पर पहचाना और सुझाव दिया कि भारतीय राष्ट्रवाद पश्चिम की तरह पृथकतावादी नहीं हो सकता है।

उनके अनुसार भारतीय लोग गहन धार्मिक प्रकृति के हैं और इससे एकजुट होने की शक्ति प्राप्त की जा सकती है। राष्ट्रीय आदर्शों के विकास से उद्देश्य और कार्यवाही में एकता प्राप्त की जा सकती है। उन्होंने करुणा, सेवा और त्याग को राष्ट्रीय आदर्शों के रूप में मान्यता दी। इसलिए विवेकानंद के लिए राष्ट्रवाद सार्वभौमिकता और मानवता पर आधारित था।

उनका मानना था कि प्रत्येक देश में एक ऐसा प्रभावी सिद्धांत होता जो उस देश के जीवन में समग्र रूप से परिलक्षित होता है और भारत के लिए यह धर्म था। धर्मनिरपेक्षता पर आधारित पश्चिमी राष्ट्रवाद के विपरीत स्वामी विवेकानंद के राष्ट्रवाद का आधार धर्म, भारतीय आध्यात्मिकता और नैतिकता थी। भारत में आध्यात्मिकता को सभी धार्मिक शक्तियों के संगम के रूप में देखा जाता है। यह माना जाता है कि यह इन सभी शक्तिओं को राष्ट्रीय प्रवाह में एकजुट करने में सक्षम है।

उन्होंने मानवतावाद और सार्वभौमिकता के आदर्शों को भी राष्ट्रवाद के आधार के रूप में स्वीकार किया। इन आदर्शों ने लोगों का स्व-प्रेरित बंधनों और उनके परिणामी दुखों से मुक्त होने हेतु पथप्रदर्शन किया है।

पिछली दो शताब्दियों के दौरान राष्ट्रवाद विभिन्न चरणों से गुज़रा है और सर्वाधिक आकर्षक शक्तियों में से एक के रूप में उभरा है। इसने लोगों को एकजुट करने के साथ-साथ विभाजित भी किया है। उन्नीसवीं शताब्दी में इसने यूरोप के एकीकरण तथा एशिया और अफ्रीका में उपनिवेशों की समाप्ति में प्रमुख भूमिका निभाई थी।

हालांकि, वर्तमान विश्व में कट्टरपंथी राष्ट्रवाद का उदय हो रहा है। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के स्थापित सम्मेलनों से संयुक्त राज्य अमेरिका का अलग होना, ब्रेक्ज़िट, स्कॉटलैंड की स्वतंत्रता के लिए दूसरे जनमत संग्रह की मांग इत्यादि इसके कुछ उदाहरण हैं। ऐसे में राष्ट्रवाद के एक संकीर्ण दृष्टिकोण ने अनेक समूहों में पैठ बना ली है। ये समूह दूसरों पर अपने अधिकार और अपने विशेषाधिकारों को सुनिश्चित करना चाहते हैं। ऐसा राष्ट्रवाद राष्ट्रों को विभाजित करता है, उन्हें अलग करता है और असमानता बढ़ाने वाली अर्थव्यवस्थाओं को जन्म देता है। साथ ही यह अनेक ऐसे लोगों को देश से दूर कर देता है जो देश के लिए योगदान दे सकते हैं।

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