इक नदिया इक नार कहावत
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हमारे प्रभु, औगुन चित न धरौ।
समदरसी है नाम तुहारौ, सोई पार करौ॥
इक लोहा पूजा में राखत, इक घर बधिक परौ।
सो दुबिधा पारस नहिं जानत, कंचन करत खरौ॥
इक नदिया इक नार कहावत, मैलौ नीर भरौ।
जब मिलि गए तब एक-वरन ह्वै, सुरसरि नाम परौ॥
तन माया, ज्यौ ब्रह्म कहावत, सूर सु मिलि बिगरौ।
कै इनकौ निरधार कीजियै कै प्रन जात टरौ॥
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Explanation:
एक नदी कहलाती है और एक नाला, जिसमें गंदा पानी भरा है, किंतु जब दोनों गङ्गाजी में मिल जाते हैं, तब उनका एक-सा रूप होकर गङ्गा नाम पड़ जाता है।
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