Importance of gandhian principles in today's world in hiindi paragraph
Answers
Answered by
0
1. सत्य
गांधी जी सत्य के बड़े आग्रही थे, वे सत्य को ईश्वर मानते थे। एक बार वायसराय लार्ड कर्जेन ने कहा था कि सत्य की कल्पना भारत में यूरोप से आई है। इस पर गांधी जी बड़े ही क्षुब्ध हुए और उन्होंने वायसराय को लिखा, “आपका विचार गलत है। भारत में सत्य की प्रतिष्ठा बहुत प्राचीन काल से चली आ रही है। सत्य परमात्मा का रूप माना जाता है।”
“सत्य मेरे लिए सर्वोपरी सिद्धांत है। मैं वचन और चिंतन में सत्य की स्थापना करने का प्रयत्न करता हूँ। परम सत्य तो परमात्मा हैं। परमात्मा कई रूपों में संसार में प्रकट हुए हैं। मैं उसे देखकर आश्चर्यचकित और अवाक हो जाता हूँ। मैं सत्य के रूप में परमात्मा की पूजा करता हूँ। सत्य की खोज में अपने प्रिय वस्तु की बली चढ़ा सकता हूँ।”
Related: राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी (निबंध)
2. अहिंसा
अहिंसा पर गांधी जी ने बड़ा सूक्ष्म विचार किया है। वे लिखते हैं, “अहिंसा की परिभाषा बड़ी कठिन है। अमुक काम हिंसा है या अहिंसा यह सवाल मेरे मन में कई बार उठा है। मैं समझता हूँ कि मन, वचन और शरीर से किसी को भी दुःख न पहुंचाना अहिंसा है। लेकिन इस पर अमल करना, देहधारी के लिए असंभव है।
साँस लेने में अनेकों सूक्ष्म जीवों की हत्या हो जाती है। आँख की पलक उठाने, गिराने से ही पलकों पर बैठे जीव मर जाते हैं। सांप। बिच्छु को भी न मारें, पर उन्हें पकडकर दूर तो फेंकना ही पड़ता है। इससे भी उन्हें थोड़ी बहुत पीड़ा तो होती ही है। मैं जो भी खाता हूँ, जो कपडे पहनता हूँ, यदि उन्हें बचाऊँ तो मुझसे जिन्हें ज्यादा जरूरत है, वे उन गरीबों के लिए काम आ सकते हैं। मेरे स्वार्थ के कारण उन्हें ये चीजें नहीं मिल पाती। इसलिए मेरे उपयोग से गरीब पडोसी के प्रति थोड़ी हिंसा होती है। जो वनस्पति मैं अपने जीने के खाता हूँ, उससे वनस्पति जीवन की हिंसा होती है। बच्चों को मारने, पीटने, डांटने में हिंसा ही तो है। क्रोध करना भी सूक्ष्म हिंसा है।
गांधी जी सत्य के बड़े आग्रही थे, वे सत्य को ईश्वर मानते थे। एक बार वायसराय लार्ड कर्जेन ने कहा था कि सत्य की कल्पना भारत में यूरोप से आई है। इस पर गांधी जी बड़े ही क्षुब्ध हुए और उन्होंने वायसराय को लिखा, “आपका विचार गलत है। भारत में सत्य की प्रतिष्ठा बहुत प्राचीन काल से चली आ रही है। सत्य परमात्मा का रूप माना जाता है।”
“सत्य मेरे लिए सर्वोपरी सिद्धांत है। मैं वचन और चिंतन में सत्य की स्थापना करने का प्रयत्न करता हूँ। परम सत्य तो परमात्मा हैं। परमात्मा कई रूपों में संसार में प्रकट हुए हैं। मैं उसे देखकर आश्चर्यचकित और अवाक हो जाता हूँ। मैं सत्य के रूप में परमात्मा की पूजा करता हूँ। सत्य की खोज में अपने प्रिय वस्तु की बली चढ़ा सकता हूँ।”
Related: राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी (निबंध)
2. अहिंसा
अहिंसा पर गांधी जी ने बड़ा सूक्ष्म विचार किया है। वे लिखते हैं, “अहिंसा की परिभाषा बड़ी कठिन है। अमुक काम हिंसा है या अहिंसा यह सवाल मेरे मन में कई बार उठा है। मैं समझता हूँ कि मन, वचन और शरीर से किसी को भी दुःख न पहुंचाना अहिंसा है। लेकिन इस पर अमल करना, देहधारी के लिए असंभव है।
साँस लेने में अनेकों सूक्ष्म जीवों की हत्या हो जाती है। आँख की पलक उठाने, गिराने से ही पलकों पर बैठे जीव मर जाते हैं। सांप। बिच्छु को भी न मारें, पर उन्हें पकडकर दूर तो फेंकना ही पड़ता है। इससे भी उन्हें थोड़ी बहुत पीड़ा तो होती ही है। मैं जो भी खाता हूँ, जो कपडे पहनता हूँ, यदि उन्हें बचाऊँ तो मुझसे जिन्हें ज्यादा जरूरत है, वे उन गरीबों के लिए काम आ सकते हैं। मेरे स्वार्थ के कारण उन्हें ये चीजें नहीं मिल पाती। इसलिए मेरे उपयोग से गरीब पडोसी के प्रति थोड़ी हिंसा होती है। जो वनस्पति मैं अपने जीने के खाता हूँ, उससे वनस्पति जीवन की हिंसा होती है। बच्चों को मारने, पीटने, डांटने में हिंसा ही तो है। क्रोध करना भी सूक्ष्म हिंसा है।
Answered by
5
Answer:
The policy of non-violence gave people
Similar questions