Importance of sand in hindi
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मिट्टी का पार्श्व दृश्य और उसके संस्तर संपादित करें
यह मानी हुई बात है कि जिस मिट्टी पर प्राकृतिक क्रियाएँ होती है, जल का प्रपात तथा वायु और सूर्यकिरण का संसर्ग होता रहता है, वह कुछ वर्षो में ऐसा रूप धारण कर लेती है जिससे उसके नीचे की भिन्न रूप रंग और गुणवाली मिट्टियों के बहुत से संस्तर हो जाते हैं। यदि हम मिट्टी की ऊपरी सतह पर १० या १२ फुट गहरा गड्ढा खोदें और मिट्टी के पार्श्व का अवलोकन करें, तो हमें नियमित रूप से कई भिन्न रूप रंग, रचना की मिट्टी एक स्तर से दूसरे स्तर तक मिलती जाएगी। वैज्ञानिकों ने इसके तीन ही प्रधान स्तर माने हैं और वे किन-किन कारणों से और किन-किन परिस्थितियों में पाए जाते हैं, इसका भी वर्णन किया है।
जल मिट्टी के ऊपरी संस्तर पर से होते हुए और बहुत से रासायनिक द्रव्यों को लेते हुए नीचे के संस्तर में जाता है और वहाँ मिट्टी के साथ मिलकर अनेक रासायनिक क्रियाओं द्वारा मिट्टी के रंग रूप को बदल देता है। इस तरह ऊपर से द्रव्य आकर नीचे के संस्तर मे जमा हो जाते हैं।
इनमें एक है ऊपरी संस्तर, जिसमें से जल द्वारा विलयन होकर द्रव्य नीचे की ओर जाते हैं, अथवा अवक्षेपण क्रिया द्वारा नीचे के स्तर में जमा हो जाते हैं। इस ऊपरी संस्तर को हम (अ) संस्तर कहते हैं। दूसरा वह संस्तर है, जिसमें ऊपर वर्णन की गई क्रिया द्वारा द्रव्य आकर जमा होते हैं इसे (ब) संस्तर कहते हैं। तीसरा संस्तर उसके नीचे है, जिसमें ऊपर की मिट्टी बनती है, इसे (स) संस्तर कहते है। इस संस्तर को दूसरे शब्दों में पैतृक संस्तर (parent horizon) भी कहा जाता है। यह नाम इसलिये सार्थक है कि इसी संस्तर से ऊपर वाली मिट्टी की उत्पति हुई है। इस संस्तर में चट्टान और उससे बने बड़े-बड़े मलबे (debris) पाए जाते हैं। हर एक संस्तर में [प्राय: (अ) और (ब) संस्तर में] भिन्न-भिन्न संस्तर सम्मिलित रहते हैं। संस्तरों का क्रमबद्ध संबंध दिखलाना अति कठिन समस्या है। इस समस्या को पहले रूस के वैज्ञानिकों ने हल किया था। सबसे कठिन समस्या तब प्रकट होती है जब मिट्टी के ऊपरी संस्तर का कुछ अंश अपरदन (erosion) द्वारा कट जाता है। कभी-कभी तो संपूर्ण (अ) संस्तर का कटाव हो जाता है और (स) संस्तर रह जाता है।
इन संस्तरों के आंतरिक संबंध पर जिस विज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान होता है, उसे मृदाविज्ञान (Pedology) कहते हैं। इस विज्ञान से मिट्टी के वर्गीकरण में अधिक सहायता मिलती है। यह आधुनिक विज्ञान है और इसकी उत्तरोतर उन्नति होती जा रही है। अब यह प्राय: सिद्ध हो गया है कि मिट्टी की ऊपरी सतह के भौतिक और रासायनिक गुणों को जान लेने से ही कृषि को लाभ नहीं हो सकता। पौधों की बढ़ती को जानने के लिये तथा कृषकों को सलाह देने के लिए यह आवश्यक है कि मिट्टी के विभिन्न संस्तरों के भौतिक और रासायनिक गुण तथा इनका परस्पर संबंध जान लिया जाय।
मिट्टी में विभिन्न प्रकार के कण रहते हैं। इनमें जो औसतन न्यून मात्रा के कण हैं, वे ही मिट्टी को उर्वरा बनाने के लिये आवश्यक हैं। इनके कारण मिट्टी की मृदुकण रचना (crumb structure) की उत्पति होती है। इस रचना द्वारा मिट्टी में जल अवशोषण की क्रिया बढ़ जाती है तथा पौधों के लिये अन्य विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थ भी अवशोषित होते हैं।
मिट्टी के भौतिक गुण मिट्टी की संरचना, जलवायु मिट्टी में स्थित ऊष्मा एवं खनिज पदार्थो पर निर्भर हैं। मिट्टी के कण भिन्न-भिन्न आकार प्रकार के, कोई बड़े तो कोई छोटे और कोई अति सूक्ष्म, होते हैं। बड़े आकार के कण छोटे-छोटे पत्थरों के टुकड़े होते हैं। जैसे जैसे इनपर प्राकृतिक क्रियाएँ होती जाती हैं, बड़े टुकड़े छोटे होते जाते हैं और अंत में बालू, सिल्ट, चिकनी मिट्टी अथवा दोमट मिट्टी के आकार के हो जाते हैं। मिट्टी के बड़े आकार के कण अधिकांश बलुई मिट्टी में पाए जाते हैं और छोटे आकार के कण मटियार मिट्टी में मिलते हैं। इन्हीं दोनों आकार के कणों के मिश्रण से भिन्न-भिन्न प्रकार की मिट्टियाँ बनती हैं और उनके भिन्न-भिन्न भौतिक गुण भी हुआ करते हैं। मिट्टी में स्थित भौतिक गुणों का कृषि विज्ञान से अत्यंत गहरा संबंध है।
मिट्टी के कुछ भौतिक गुण, जैसे आपेक्षिक गुरुत्व, कणविन्यास (structure), कण आकार, (texture), मिट्टी की सुघट्यता और संसंजन, रंग, भार कणांतरिक छिद्र, समूह आदि महत्व के हैं, मिट्टी का आपेक्षिक गुरुत्व दो प्रकार का, एक आभासी (apparent) और दूसरा निरपेक्ष (absolute) होता है।
आभासी आपेक्षिक गुरुत्व मिट्टी के भीतरी भाग में जल तथा वायु के समावेश से प्राप्त होता है, अर्थात् यह मिट्टी के भीतरी स्थित खनिज से मिश्रित जल और वायु का गुरुत्व है। इसलिये इस गुरुत्व की मात्रा निरपेक्ष आपेक्षिक गुरुत्व से कम होती है। किसी ज्ञात आयतन वाली शुष्क मिट्टी के भार और उसी आयतनवाले जल के भार का यह अनुपात है। यह १.४० से १.६८ तक होता है। चिकनी मिट्टी और सिल्ट के कण बहुत छोटे और हल्के होते हैं, इसलिये वे एक दूसरे के साथ सघन नहीं हो पाते। ऐसी मिट्टी का भार कम होता है। मटियार, दोमट तथा सिल्ट मिट्टी का भार जानने के लिये उसे शुष्क बना दिया जाता है, क्योंकि भिन्न-भिन्न प्रकार की मिट्टी में नमी भिन्न प्रकार की होती है। निरपेक्ष आपेक्षिक गुरुत्व मिट्टी के उन भागों से संबंध रखता है जो खनिज तत्व है। इस कारण इसका मान अधिक होता है। निरपेक्ष आपेक्षिक गुरुत्व १.४ से २.६ के बीच में होता है।
यह मानी हुई बात है कि जिस मिट्टी पर प्राकृतिक क्रियाएँ होती है, जल का प्रपात तथा वायु और सूर्यकिरण का संसर्ग होता रहता है, वह कुछ वर्षो में ऐसा रूप धारण कर लेती है जिससे उसके नीचे की भिन्न रूप रंग और गुणवाली मिट्टियों के बहुत से संस्तर हो जाते हैं। यदि हम मिट्टी की ऊपरी सतह पर १० या १२ फुट गहरा गड्ढा खोदें और मिट्टी के पार्श्व का अवलोकन करें, तो हमें नियमित रूप से कई भिन्न रूप रंग, रचना की मिट्टी एक स्तर से दूसरे स्तर तक मिलती जाएगी। वैज्ञानिकों ने इसके तीन ही प्रधान स्तर माने हैं और वे किन-किन कारणों से और किन-किन परिस्थितियों में पाए जाते हैं, इसका भी वर्णन किया है।
जल मिट्टी के ऊपरी संस्तर पर से होते हुए और बहुत से रासायनिक द्रव्यों को लेते हुए नीचे के संस्तर में जाता है और वहाँ मिट्टी के साथ मिलकर अनेक रासायनिक क्रियाओं द्वारा मिट्टी के रंग रूप को बदल देता है। इस तरह ऊपर से द्रव्य आकर नीचे के संस्तर मे जमा हो जाते हैं।
इनमें एक है ऊपरी संस्तर, जिसमें से जल द्वारा विलयन होकर द्रव्य नीचे की ओर जाते हैं, अथवा अवक्षेपण क्रिया द्वारा नीचे के स्तर में जमा हो जाते हैं। इस ऊपरी संस्तर को हम (अ) संस्तर कहते हैं। दूसरा वह संस्तर है, जिसमें ऊपर वर्णन की गई क्रिया द्वारा द्रव्य आकर जमा होते हैं इसे (ब) संस्तर कहते हैं। तीसरा संस्तर उसके नीचे है, जिसमें ऊपर की मिट्टी बनती है, इसे (स) संस्तर कहते है। इस संस्तर को दूसरे शब्दों में पैतृक संस्तर (parent horizon) भी कहा जाता है। यह नाम इसलिये सार्थक है कि इसी संस्तर से ऊपर वाली मिट्टी की उत्पति हुई है। इस संस्तर में चट्टान और उससे बने बड़े-बड़े मलबे (debris) पाए जाते हैं। हर एक संस्तर में [प्राय: (अ) और (ब) संस्तर में] भिन्न-भिन्न संस्तर सम्मिलित रहते हैं। संस्तरों का क्रमबद्ध संबंध दिखलाना अति कठिन समस्या है। इस समस्या को पहले रूस के वैज्ञानिकों ने हल किया था। सबसे कठिन समस्या तब प्रकट होती है जब मिट्टी के ऊपरी संस्तर का कुछ अंश अपरदन (erosion) द्वारा कट जाता है। कभी-कभी तो संपूर्ण (अ) संस्तर का कटाव हो जाता है और (स) संस्तर रह जाता है।
इन संस्तरों के आंतरिक संबंध पर जिस विज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान होता है, उसे मृदाविज्ञान (Pedology) कहते हैं। इस विज्ञान से मिट्टी के वर्गीकरण में अधिक सहायता मिलती है। यह आधुनिक विज्ञान है और इसकी उत्तरोतर उन्नति होती जा रही है। अब यह प्राय: सिद्ध हो गया है कि मिट्टी की ऊपरी सतह के भौतिक और रासायनिक गुणों को जान लेने से ही कृषि को लाभ नहीं हो सकता। पौधों की बढ़ती को जानने के लिये तथा कृषकों को सलाह देने के लिए यह आवश्यक है कि मिट्टी के विभिन्न संस्तरों के भौतिक और रासायनिक गुण तथा इनका परस्पर संबंध जान लिया जाय।
मिट्टी में विभिन्न प्रकार के कण रहते हैं। इनमें जो औसतन न्यून मात्रा के कण हैं, वे ही मिट्टी को उर्वरा बनाने के लिये आवश्यक हैं। इनके कारण मिट्टी की मृदुकण रचना (crumb structure) की उत्पति होती है। इस रचना द्वारा मिट्टी में जल अवशोषण की क्रिया बढ़ जाती है तथा पौधों के लिये अन्य विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थ भी अवशोषित होते हैं।
मिट्टी के भौतिक गुण मिट्टी की संरचना, जलवायु मिट्टी में स्थित ऊष्मा एवं खनिज पदार्थो पर निर्भर हैं। मिट्टी के कण भिन्न-भिन्न आकार प्रकार के, कोई बड़े तो कोई छोटे और कोई अति सूक्ष्म, होते हैं। बड़े आकार के कण छोटे-छोटे पत्थरों के टुकड़े होते हैं। जैसे जैसे इनपर प्राकृतिक क्रियाएँ होती जाती हैं, बड़े टुकड़े छोटे होते जाते हैं और अंत में बालू, सिल्ट, चिकनी मिट्टी अथवा दोमट मिट्टी के आकार के हो जाते हैं। मिट्टी के बड़े आकार के कण अधिकांश बलुई मिट्टी में पाए जाते हैं और छोटे आकार के कण मटियार मिट्टी में मिलते हैं। इन्हीं दोनों आकार के कणों के मिश्रण से भिन्न-भिन्न प्रकार की मिट्टियाँ बनती हैं और उनके भिन्न-भिन्न भौतिक गुण भी हुआ करते हैं। मिट्टी में स्थित भौतिक गुणों का कृषि विज्ञान से अत्यंत गहरा संबंध है।
मिट्टी के कुछ भौतिक गुण, जैसे आपेक्षिक गुरुत्व, कणविन्यास (structure), कण आकार, (texture), मिट्टी की सुघट्यता और संसंजन, रंग, भार कणांतरिक छिद्र, समूह आदि महत्व के हैं, मिट्टी का आपेक्षिक गुरुत्व दो प्रकार का, एक आभासी (apparent) और दूसरा निरपेक्ष (absolute) होता है।
आभासी आपेक्षिक गुरुत्व मिट्टी के भीतरी भाग में जल तथा वायु के समावेश से प्राप्त होता है, अर्थात् यह मिट्टी के भीतरी स्थित खनिज से मिश्रित जल और वायु का गुरुत्व है। इसलिये इस गुरुत्व की मात्रा निरपेक्ष आपेक्षिक गुरुत्व से कम होती है। किसी ज्ञात आयतन वाली शुष्क मिट्टी के भार और उसी आयतनवाले जल के भार का यह अनुपात है। यह १.४० से १.६८ तक होता है। चिकनी मिट्टी और सिल्ट के कण बहुत छोटे और हल्के होते हैं, इसलिये वे एक दूसरे के साथ सघन नहीं हो पाते। ऐसी मिट्टी का भार कम होता है। मटियार, दोमट तथा सिल्ट मिट्टी का भार जानने के लिये उसे शुष्क बना दिया जाता है, क्योंकि भिन्न-भिन्न प्रकार की मिट्टी में नमी भिन्न प्रकार की होती है। निरपेक्ष आपेक्षिक गुरुत्व मिट्टी के उन भागों से संबंध रखता है जो खनिज तत्व है। इस कारण इसका मान अधिक होता है। निरपेक्ष आपेक्षिक गुरुत्व १.४ से २.६ के बीच में होता है।
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