Importance of women in hindi. (it is very URGENT pls)
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“नारी! तुम केवल श्रद्धा हो,
विश्वास रजत नग पगतल में ।
पीयूष स्त्रोत सी बहा करो,
जीवन के सुदंर समतल में ।।”
– जयशंकर प्रसाद
प्राचीन युग से ही हमारे समाज में नारी का विशेष स्थान रहा है । हमारे पौराणिक ग्रंथों में नारी को पूज्यनीय एवं देवीतुल्य माना गया है । हमारी धारणा रही है कि देव शक्तियाँ वहीं पर निवास करती हैं जहाँ पर समस्त नारी जाति को प्रतिष्ठा व सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है ।
इन प्राचीन ग्रंथों का उक्त कथन आज भी उतनी ही महत्ता रखता है जितनी कि इसकी महत्ता प्राचीन काल में थी । कोई भी परिवार, समाज अथवा राष्ट्र तब तक सच्चे अर्थों में प्रगति की ओर अग्रसर नहीं हो सकता जब तक वह नारी के प्रति भेदभाव, निरादर अथवा हीनभाव का त्याग नहीं करता है ।
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प्राचीन काल में भारतीय नारी को विशिष्ट सम्मान व पूज्यनीय दृष्टि से देखा जाता था । सीता, सती-सावित्री, अनसूया, गायत्री आदि अगणित भारतीय नारियों ने अपना विशिष्ट स्थान सिद्ध किया है । तत्कालीन समाज में किसी भी विशिष्ट कार्य के संपादन मैं नारी की उपस्थिति महत्वपूर्ण समझी जाती थी ।
कालांतर में देश पर हुए अनेक आक्रमणों के पश्चात् भारतीय नारी की दशा में भी परिवर्तन आने लगे । नारी की स्वयं की विशिष्टता एवं उसका समाज में स्थान हीन होता चला गया । अंग्रेजी शासनकाल के आते-आते भारतीय नारी की दशा अत्यंत चिंतनीय हो गई । उसे अबला की संज्ञा दी जाने लगी तथा दिन-प्रतिदिन उसे उपेक्षा एवं तिरस्कार का सामना करना पड़ा ।
राष्ट्रकवि ‘मैथिली शरण गुप्त’ ने अपने काल में बड़े ही संवेदनशील भावों से नारी की स्थिति को व्यक्त किया है:
”अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी ।
आँचल में है दूध और आँखों में पानी ।”
विदेशी आक्रमणों व उनके अत्याचारों के अतिरिक्त भारतीय समाज में आई सामाजिक कुरीतियाँ, व्यभिचार तथा हमारी परंपरागत रूढ़िवादिता ने भी भारतीय नारी को दीन-हीन कमजोर बनाने में अहम भूमिका अदा की ।
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नारी के अधिकारों का हनन करते हुए उसे पुरुष का आश्रित बना दिया गया । दहेज, बाल-विवाह व सती प्रथा आदि इन्हीं कुरीतियों की देन है । पुरुष ने स्वयं का वर्चस्व बनाए रखने के लिए ग्रंथों व व्याख्यानों के माध्यम से नारी को अनुगामिनी घोषित कर दिया ।
अंग्रेजी शासनकाल में भी रानी लक्ष्मीबाई, चाँद बीबी आदि नारियाँ अपवाद ही थीं जिन्होंने अपनी सभी परंपराओं आदि से ऊपर उठ कर इतिहास के पन्नों पर अपनी अमिट छाप छोड़ी । स्वतंत्रता संग्राम में भी भारतीय नारियों के योगदान की अनदेखी नहीं की जा सकती है ।
पुरुषों और महिलाओं के बीच शारीरिक मतभेद को देखते हुए, पुरुषों की तुलना में शरीर के आकार के लिए महिलाएं अधिक काम शरीर का प्रदर्शन करती हैं। अधिक से अधिक शोध से पता चलता है कि महिलाएं आम तौर पर घरों और नाशषों के चलते चलती हैं जबकि पुरुष संपत्ति में अधिक निवेश करते हैं। दिन के अंत में, एक पुरुष एक आदमी के मुकाबले गरीब और उसके नाम पर निवास के बिना रहता है। फिर भी, यह पुरुष उद्यमी है जो अधिकतर बाधाओं के तनाव में आकर आत्महत्या कर लेते हैं। गांव के बाद गांव के विदर्भ में किसानों की विधवाएं हैं जो आत्महत्या करते हैं, जो पहले की ज़िम्मेदारियों के अलावा अपनी असंभव लड़ाइयों के वारिस नहीं हैं, बल्कि यौन शिकारियों के लिए आसान शिकार भी हैं। और वे उस पर काम करते हैं महिलाओं को मुश्किल दुनिया की निराशा का सामना करना पड़ता है, क्योंकि उनके पति का सामना क्रोध या शराब के रूप में होता है, भले ही वे एक ही दुनिया में खड़े होते हैं।