In hindi poem on sciemce is necessary for cleanliness
Answers
पेड़ो से पूछा मैंने……
यू ही एक रोज़,
क्यों नहीं है तुम में अब वो पहले जैसा जोश?
क्यों नहीं बैठ कर तुम्हारे नीचे,
नहीं आती वो पहले जैसी बात?
जब शाम ढला करती थी ….
न जाने हो जाती थी कब रात?
क्यों नहीं अब कर पाती, मै फिर से तुमसे बात?
मस्ती भी अब छूट गयी,जब होती है बरसात |
डर लगता है अब चदते हुए ,कोई भी हो शाख…
घबरा कर दिल ये कहता है कि, हो जायूँगी मै राख |
अगर तुम्हे बनना ही था,ऐसा निर्दय कठोर….
तो अच्छा है अब चले जाओ तुम,इस Delhi को छोड़ |
तुमसे है परेशान यहाँ पर, भी सारे इंसान….
रहने कि जगह कम है, और तुम बन रहे हो भगवान् |
सुनकर मेरी व्यथा को मुझसे,पेड़ थोडा मुस्कुराया,
फिर प्यार से उसने हंसकर मुझपर, हवा का झोंका एक लहराया…..
बोला धीमे से मेरे कान में -सुनो मेरे बदलने का वो राज़,
जिसको सुनकर हंसेगा सारा, निर्दय मानव समाज |
जोश मेरा वो पहले जैसा खोया यंही है देखो …….
“प्रदूषण” के काले धुएँ से ,बिखरे रंग अनेको,
मै क्या करता धीरे-धीरे ,कच्ची हो गयी मेरी शाख,
नाम का पेड़ बनकर रह गया अब ,रखता हूँ “Museum ” में सजने कि एक आस ||