in the Kavita एक बुंद घर से निकल ने के बाद बूंद किस बारे में सोच रही थी ?
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आज फिर इस कविता पर अचानक ध्यान चला गया !
एक #बूंद जो बूंदों से ही निर्मित बादल की गोद से अलग होकर मानों खुद की खोज में खुद को मिटाने निकल पड़ी ! हिम्मत की बात है ! उसने बादल का घर छोड़ा ! उसने बादलों की दुनियां से विद्रोह कर दिया ! वो बादलों का संसार जिसमें असंख्य बूंदें रोज जन्मती और मरती हैं ! कई बूंदों ने उसे रोका भी होगा ! अभी रूक जाओ ! जैसे सब बूंदें जाएँगी वैसे तुम भी जाना ! सभी जा रहे हैं धीरे धीरे ! सबकी मंजिल भी वही है जिसकी खोज में तुम जाना चाहती हो ! तो थोडा रूक जाओ ! हमारा संसार जब हमें गिराएगा तब जायेंगे !हजारों हजार तर्क वितर्कों को नकार कर ,संगी साथियों से भरे खुबसूरत आकाश में तैरते बादलों के संसार को छोड़ना कोई आसान निर्णय तो न रहा होगा ! लेकिन दृढ निश्चयी वो #बूँद किसी अलौकिक प्रेरणा से बंधी निकल पडती है उस जहाँ की खोज में जहाँ उसके संसार की असंख्य #बूंदें गयी लेकिन वो #जहाँ कैसा है बताने के लिए कोई न लौटी
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