History, asked by arbindtharu2075, 1 month ago

In the reaction, NaOH + Al(OH)3 →
NaAlO2 + H20, If mol.wt of Al(OH)3 is
M, its equivalent weight is​

Answers

Answered by ramadevimaran1976
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Answer:

Number of OH

ions given by Al(OH)

3

is one. Therefore, Equivalent weight is

1

MW

.

Explanation:

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Answered by adityaisraji
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बाल गंगाधर जांभेकर (मराठी: बाळ गंगाधरशास्त्री जांभेकर), (जन्म स. 1812; मृत्यु स. 1846) मराठी पत्रकारिता के अग्रदूत थे। उन्होने 'दर्पण' नामक प्रथम मराठी पत्रिका आरम्भ की। उन्होंने इतिहास और गणित से संबंधित विषयों पर अनेक पुस्तकें लिखीं। रॉयल एशियाटिक सोसाइटी तथा जिऑग्राफिकल सोसाइटी में पढ़े गए शिलालेखों तथा ताम्रपत्रों से संबंधित उनके निबंध अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। शिलालेखों की खोज के सिलसिले में जब वे कनकेश्वर गए थे, वही उन्हें लू लग गई। इसी में उनका देहावसान हुआ। सच्चे अर्थ में उन्होंने अपने कर्म में अपने जीवन का समर्पण किया था। ग्रहण से संबंधित वास्तविकता अपने भाषाणों में प्रकट करने तथा श्रीपती शेषाद्रि नामक ब्राह्मण को ईसाई धर्म से पुन: हिंदूधर्म में लेने के कारण वे जातिबहिष्कृत कर दिए गए थे। महाराष्ट्र के वे समाजसुधारक थे।

जीवनी संपादित करें
बाल गंधाधर जांभेकर का जन्म राजापुर जिले के पोंबर्ले गाँव में हुआ था। उनके पिता अच्छे वैदिक थे। अध्यापकों में बापू छत्रे तथा बापू शास्त्री शुक्ल थे।

दादोबा पांडुरंग ने अपनी आत्मकथा में उनकी अद्भुत स्मरणशक्ति के संबंध में एक प्रसंग का उल्लेख किया है :

एक बार उन्होंने दो गोरे सिपाहियों को लड़ते हुए देखा। अदालत में उनको गवाह के रूप में उपस्थित होना पड़ा। यद्यपि उन्हें उस समय तक अंग्रेजी नहीं आती थी, उन्होंने केवल अपनी स्मरणशक्ति से उनके संभाषण को तथ्यत: उद्धृत किया। प्रो॰ आर्लिबार से उन्होंने गणित शास्त्र का ज्ञान प्राप्त किया। स. 1820 में अध्ययन की समाप्ति के बाद वे एल्फिंस्टन कॉलेज में अपने गुरु के सहायक के रूप में गणित के अध्यापक नियुक्त हुए। 1832 में वे अक्कलकोट के राजकुमार के अंग्रेजी के अध्यापक के रूप में भी रहे। इसी वर्ष भाऊ महाजन के सहयोग से उन्होंने "दर्पण" नामक अंग्रेजी मराठी साप्ताहिक चलाया। इसमें वे अंग्रेजी विभाग में लिखते थे। वे अनेक भाषाओं के पंडित थे। मराठी और संस्कृत के अतिरिक्त लैटिन, ग्रीक, इंग्लिश, फ्रेंच, फारसी, अरबी, हिंदी, बंगाली, गुजराती तथा कन्नड भाषाएँ उन्हें आती थीं। उनकी यह बहुमुखी योग्यता देखकर सरकार ने "जस्टिस ऑव दि पीस" के पद पर उनकी नियुक्ति की (1840)। इस नाते वे हाईकोर्ट में ग्रांड ज्यूरी का काम करते थे। 1842 से 1844 तक एज्युकेशनल इन्सपेक्टर तथा ट्रेनिंग कॉलेज के प्रिंसिपल के रूप में भी रहे। 1840 में "दिग्दर्शन" नाम की एक मासिक पत्रिका भी उन्होंने शुरू की। इसमें वे शास्त्रीय विषयों पर निबंध लिखते थे।
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