Hindi, asked by akashgohiya30406, 4 months ago

इन जिलों में कौन-कौन से स्वतंत्रता सेनानियों को किस-किस तरह की यातनाएं दी जाती थी ​

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Answered by sumit17441
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स्वतंत्रता आंदोलन में बौरारो घाटी के सेनानियों का अहम योगदान रहा है। क्षेत्र के छह स्वतंत्रता सेनानियों ने अंग्रेजी सरकार की अमानवनीय यातनाएं झेलते हुए जेलों में दम तोड़ दिया था। शहीदों की याद में चनौदा में शहीद स्मारक बनाया गया है। यहां प्रतिवर्ष दो सितंबर को शहीद दिवस समारोह आयोजित होता है।

बौरारो घाटी ऐसा क्षेत्र रहा है जिसे आजादी के नायक महात्मा गांधी के 1929 में 15 दिन प्रवास के बाद ऐतिहासिक स्थान प्राप्त हुआ है। क्षेत्र के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने कुली बेगार, झंडा सत्याग्रह, जंगल सत्याग्रह, अंग्रेजों भारत छोड़ो 1942 की अगस्त क्रांति, असहयोग आंदोलन, अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ झंडा उठाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। घाटी के विभिन्न क्षेत्रों के 58 स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने देश को आजादी दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1921 में वैष्णव बंधुओं मोती राम वैष्णव तथा बद्री दत्त वैष्णव की पहली गिरफ्तारी के बाद यहां आजादी की अलख और तेज हुई। 1938 में यहां चनौदा में खादी आश्रम की स्थापना की गई, जो कि आंदोलनकारियों की प्रमुख स्थली के रूप में अंग्रेजी फौज की आंखों की किरकिरी बन गया था। डॉ. राम मनोहर लोहिया ने यहां जनसभा कर लोगों में राष्ट्र प्रेम की अलख जगाई। 2 सितंबर 1942 को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के पावन पर्व पर गोरी फौज ने चनौदा गांधी आश्रम को पुन: घेर लिया। गांधी आश्रम की संपत्ति जब्त करने के साथ ही यहां के दर्जनों सेनानियों को कठोर यातनाएं देते हुए बंदी बना लिया गया। जिसमें शहीद किशन सिंह बोरा, रतन सिंह कबडोला, विशन सिंह बोरा, उदे सिंह प्रधान, त्रिलोक सिंह पांगती तथा बाग सिंह दोसाद ने आजादी आंदोलन में शहीद होने वालों की सूची में अपना नाम दर्ज कराया। इन छह शहीदों ने जेलों में ही अपने प्राण त्याग दिए थे। शहीदों की याद में प्रतिवर्ष दो सितंबर को चनौदा में शहीद दिवस समारोह आयोजित किया जाता है।

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