Hindi, asked by kaluvaskel80, 2 days ago

इन्क्यूबेटर से होने वाले कोई दो लाभ लिखिए​

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Answered by shalmaponnappas
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Explanation:

आर्यन और प्रफुल्ल दोनों भाइयों की साइंस में विशेष रुचि थी। साइंस की उन्हें काफी जानकारी भी थी। स्कूल से लौटकर आने के बाद भी वे दोनों कभी साइंस की कोई मैगजीन पढ़ते रहते तो कभी साइंस से जुड़ी कोई वेबसाइट देखते रहते। उनकी कॉलोनी में रहने वाले लोग अकसर उनके पापा से कहते, ‘देख लीजिएगा श्याम जी! आपके बेटे एक दिन बहुत बड़े वैज्ञानिक बनेंगे।’

लोगों के ऐसा कहने की वजह यह थी कि उन्होंने कई बार आर्यन और प्रफुल्ल को साइंस की मदद से समस्याओं के काफी रोचक समाधान निकालते देखा था। आज भी उनके पास एक ऐसी समस्या आ गई थी। दरअसल सुबह जब वे स्कूल बस के आने का इंतजार कर रहे थे तब उनकी कॉलोनी में रहने वाले एक अंकल उनके पास आए और कहने लगे, ‘मैं एक मुश्किल में फंस गया हूं। मुझे लगता है कि उसका समाधान तुम दोनों निकाल सकते हो। क्या तुम मेरी मदद करोगे?’

‘क्या हुआ अंकल, आप बताइए। अगर संभव हुआ तो हम आपकी परेशानी का हल जरूर निकालेंगे।’ आर्यन बोला।

‘थैंक्यू बच्चो! मुझे तुमसे यही उम्मीद थी। अब मेरी समस्या सुनो- मेरे पास एक मुर्गी है, जिसे मैंने बड़े प्यार से पाला है। कल वह घर के बाहर घूमते-घूमते अचानक सामने वाले घर में चली गई और लोहे के कंटीले तारों में फंसकर जख्मी हो गई। कल ही उसने दो अंडे दिए हैं। अंडों में से चूजों के बाहर आने में अभी समय है और मुर्गी अभी ऐसी हालत में नहीं है कि उन्हें गर्मी देकर से सके। क्या अंडों को सेने का कोई और तरीका हो सकता है? मैं चाहता हूं कि दोनों चूजे अंडों से बाहर निकलने के बाद पूरी तरह स्वस्थ हों और तब तक मुर्गी की हालत भी सुधर जाए।’

आर्यन और प्रफुल्ल ने एक पल के लिए कुछ सोचा और एक-दूसरे की तरफ देखकर दोनों के मुंह से निकला-‘इनक्यूबेटर’।फिर वे दोनों बोले, ‘अंकल आपका काम हो जाएगा। हमें शाम तक का

समय दीजिए। आपके चूजे भी सही सलामत रहेंगे और मुर्गी भी।’ यह सुनते ही कॉलोनी वाले अंकल के चेहरे पर मुस्कान आ गई।

स्कूल से घर वापस आते ही दोनों भाइयों ने खाना खाया और इनक्यूबेटर बनाने में लग गए। सबसे पहले आर्यन ने थर्मोकॉल का एक चौकोर डिब्बा बनाया, जिसे खोला भी जा सके। इसके बाद प्रफुल्ल ने उसके अंदर चारों तरफ रुई की मोटी पर्त बिछा दी ताकि उसके अंदर अंडों को सेने के लिए जरूरी गर्मी बनी रहे।

दोनों भाइयों ने बायोलॉजी के पाठ इनक्यूबेटर में पढ़ा था कि मुर्गी के अंडों को सेने के लिए 99 से 102 डिग्री के आस-पास के तापमान की जरूरत होती है। दोनों ने इसके लिए उस डिब्बे का तापमान मापने के लिये उसमें तापमान मानक यंत्र के रूप में थर्मामीटर रख दिया। फिर डिब्बे के अंदर एक साफ मुलायम कपड़ा बिछाया। साथ ही उस डिब्बे में ऊपर से एक छेद करके उसमें बिजली का एक तार लटकाया। बिजली के उस तार के एक कोने में प्लग लगाया और तार के दूसरे कोने को बॉक्स में लटकाकर उसके अंदर होल्डर लगाया। होल्डर में एक बल्ब फिट किया और उसे जला दिया ताकि उसके जलने से डिब्बे में जरूरत के हिसाब से तापमान बना रहे। इसके बाद दोनों ने उसका तापमान थर्मामीटर से मापकर देखा तो वह उतना ही था, जितने की उन्हें जरूरत थी। अब उनका इनक्यूबेटर मुर्गी के अंडे सेने के लिए तैयार था।

शाम को आर्यन और प्रफुल्ल इनक्यूबेटर लेकर मुर्गी वाले अंकल के घर गए। वहां उन्होंने उसे सेट करके उसमें दोनों अंडों को रख दिया। साथ ही उन्होंने अंकल से कहा,‘इन अंडों में से चूजे निकलने में 21-23 दिन का समय लगेगा। हम बीच-बीच में आकर इसे चेक करते रहेंगे। अब हम चलते हैं और आप भी अब निश्चिंत होकर अपनी मुर्गी का इलाज करवाइये।

घरेलू इनक्यूबेटर में अंडों के सेने का इंतजाम असर दिखा रहा था। 21वें दिन आर्यन और प्रफुल्ल को अंडों में कुछ हलचल सी दिखी। यह देखकर वे दोनों बहुत खुश हुए। 23वें दिन अंडे का छिलका टूटा और उसके अंदर से दो प्यारे-प्यारे चूजे बाहर आए। उन्हें देखकर सब तालियां बजाने लगे। कॉलोनी में रहने वाले लोग आर्यन और प्रफुल्ल को बधाई दे रहे थे।

आर्यन और प्रफुल्ल की खुशी का ठिकाना नहीं था। अगले दिन उन दोनों के स्कूल में प्रिंसिपल सर ने दोनों की जमकर तारीफ की। उन्होंने कहा, ‘आर्यन और प्रफुल्ल हमारे स्कूल के नंबर वन बाल वैज्ञानिक हैं। ये सिर्फ परीक्षा में पास होने के लिए ही पढ़ाई नहीं करते, बल्कि उसे अमल में भी लाते हैं। आज स्कूल के सभी छात्र इन दोनों के लिए तालियां बजाएंगे।’ सर का इतना कहना था, सारे बच्चों ने प्रफुल्ल और आर्यन के लिए जोरदार तालियां बजाईं। इससे दोनों का हौसला और बुलंद हो गया।

दोनों ने सोच लिया था कि वे थॉमस अल्वा एडीसन, गैलीलियो और आइंस्टीन के बारे में केवल एग्जाम में ही नहीं लिखेंगे, बल्कि उनकी तरह बन कर दिखाएंगे और अपने स्कूल का नाम रोशन करेंगे।

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