इन सबका कस पता चलता ह
।
पड़े थे नींद में उनको, प्रभाकर ने जगाया
है
किरण ने खोल दी आँखें, गले फिर-फिर लगाया
है
हवा ने हलके झोंकों से प्रसूनों की महक भर दी।
विहगों ने दुमों पर स्वर मिलाकर राग गाया है।
तितलियाँ नाचतीं उड़ती रंगों से मुग्ध कर-करके ।
प्रसूनों पर ललचकर बैठती हैं मन लुभाया है।
प्रवासी दूर के परिचित किसी से मिलने को आतुर,
प्रकृति ने स्वर्ण केशर से वसन जैसे रँगाया है।
कलोलों से भरे, देखा, सकल जलचर बराती हैं।
नदी का सिंधु ने संवेद से गौना कराया है।
सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला
Answers
Answered by
1
Answer:
can uh please give me the chapter name ...
then you will get your answer
good luck
Similar questions