इनमें दो बात हैं - एक तो नगर भर में राजा के न्याय के डर से कोई मुटाता ही नहीं, दूसरे और किसी को पकड़ें तो न जाने क्या
बात बनावें कि हमी लोग के सिर कहीं न घहराय और फिर इस राज में साधू महात्मा इन्हीं लोगों की दुर्दशा है, इससे तुम्हीं को
फाँसी देंगे
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इनमें दो बात हैं - एक तो नगर भर में राजा के न्याय के डर से कोई मुटाता ही नहीं, दूसरे और किसी को पकड़ें तो न जाने क्या बात बनावें कि हमी लोग के सिर कहीं न घहराय और फिर इस राज में साधू महात्मा इन्हीं लोगों की दुर्दशा है, इससे तुम्हीं को फाँसी देंगे ।
यह कथन ‘भारतेंदु हरिश्चंद्र’ द्वारा लिखित नाटक “अंधेर नगरी” से लिया गया है। इस कथन का वक्ता एक प्यादा है, जो यह कथन गोबरधनदान नामक नाटक के एक पात्र गोबरधनदास से कह रहा है भारतेंदु हरिश्चंद्र द्वारा रचित नाटक अंधेर नगरी के माध्यम से लेखक ने यह संदेश देने का प्रयत्न किया है कि लालच में पड़कर देश हित को नहीं भूलना चाहिए। किसी भी सच्चे देशभक्त के लिए स्वाभिमान तथा स्वाधीनता का अत्यंत महत्व होता है। भारतेंदु हरिश्चंद्र हिंदी के एक प्रसिद्ध नाटककार थे उन्होंने अंधेर नगरी के अलावा अनेक नाटकों की रचना की है।
इस कहानी के प्रमुख पात्र गोबरदास, राजा और मंत्री आदि हैं तथा अन्य पात्रों में कुंजड़िन, हलवाई, मंत्री, कल्लू, बनिया, कारीगर, भिश्ती, कसाई, गडरिया, कोतवाल प्यादे और सिपाही आदि हैं।
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