Increasing pollution in city life 200words answer in hindi
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परिचय
आधुनिक समय में पर्यावरण प्रदूषण सबसे बड़ी समस्या है और पृथ्वी पर कोई भी प्रजाति इस मुद्दे से अछूती नहीं है। प्राकृतिक पर्यावरण का दूषित होना मानव में बहुत सारी बीमारियों को जन्म देता है और जानवरों और अन्य जीवों के सामान्य अस्तित्व को प्रभावित करता है।
प्रदूषण के प्रभाव
यह सामाजिक, आर्थिक, शारीरिक और मानसिक रूप से सभी पहलुओं पर हमें प्रभावित करता है। बढ़ता प्रदूषण न केवल इंसानों के जीवन को प्रभावित करता है बल्कि पृथ्वी पर मौजूद सभी प्रजातियों पर भी इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। बढ़ते प्रदूषण ने कई प्रमुख पर्यावरणीय समस्याओं जैसे ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन को भी जन्म दिया है।
प्रदूषण के कारण
प्रदूषण का कारण वाहन का उत्सर्जन, औद्योगिक अपशिष्ट और धुआं, अनुचित अपशिष्ट निपटान, प्लास्टिक और पॉलिथीन का बहुत अधिक उपयोग आदि है। रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का बहुत अधिक उपयोग भी प्रदूषण का कारण बनता है और भूजल को दूषित करता है।
प्रदूषण की रोकथाम
अगर हम प्रदूषण के मुद्दे से लड़ना चाहते हैं तो हमें वाहनों के उपयोग को कम करना होगा, औद्योगिक धुएं को नियंत्रित करना होगा, पानी को बचाना होगा, कोयले और पेट्रोलियम उत्पादों के उपयोग को कम करना होगा। प्लास्टिक और पॉलिथीन के उपयोग पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाना चाहिए, और बहुत अधिक उपयोग उर्वरकों और कीटनाशकों को नियंत्रित किया जाना चाहिए।
निष्कर्ष
पर्यावरण प्रदूषण किसी एक देश की समस्या नहीं है; यह पूरी दुनिया का मुद्दा है, इसलिए इसे रोकने के लिए हम सभी को मिलकर प्रयास करने की जरूरत है। यदि इसे नियंत्रण में नहीं लिया जाता है, तो यह भविष्य में पूरे ग्रह को काफी हद तक प्रभावित कर सकता है और मानव अस्तित्व का सवाल भी पैदा करेगा।
Answer:
प्रदूषण पर हिन्दी में निबंध
Webdunia
प्रस्तावना : विज्ञान के इस युग में मानव को जहां कुछ वरदान मिले है, वहां कुछ अभिशाप भी मिले हैं। प्रदूषण एक ऐसा अभिशाप हैं जो विज्ञान की कोख में से जन्मा हैं और जिसे सहने के लिए अधिकांश जनता मजबूर हैं।
प्रदूषण का अर्थ : प्रदूषण का अर्थ है -प्राकृतिक संतुलन में दोष पैदा होना। न शुद्ध वायु मिलना, न शुद्ध जल मिलना, न शुद्ध खाद्य मिलना, न शांत वातावरण मिलना।
प्रदूषण कई प्रकार का होता है! प्रमुख प्रदूषण हैं - वायु-प्रदूषण, जल-प्रदूषण और ध्वनि-प्रदूषण ।
वायु-प्रदूषण : महानगरों में यह प्रदूषण अधिक फैला है। वहां चौबीसों घंटे कल-कारखानों का धुआं, मोटर-वाहनों का काला धुआं इस तरह फैल गया है कि स्वस्थ वायु में सांस लेना दूभर हो गया है। मुंबई की महिलाएं धोए हुए वस्त्र छत से उतारने जाती है तो उन पर काले-काले कण जमे हुए पाती है। ये कण सांस के साथ मनुष्य के फेफड़ों में चले जाते हैं और असाध्य रोगों को जन्म देते हैं! यह समस्या वहां अधिक होती हैं जहां सघन आबादी होती है, वृक्षों का अभाव होता है और वातावरण तंग होता है।
जल-प्रदूषण : कल-कारखानों का दूषित जल नदी-नालों में मिलकर भयंकर जल-प्रदूषण पैदा करता है। बाढ़ के समय तो कारखानों का दुर्गंधित जल सब नाली-नालों में घुल मिल जाता है। इससे अनेक बीमारियां पैदा होती है।
ध्वनि-प्रदूषण : मनुष्य को रहने के लिए शांत वातावरण चाहिए। परन्तु आजकल कल-कारखानों का शोर, यातायात का शोर, मोटर-गाड़ियों की चिल्ल-पों, लाउड स्पीकरों की कर्णभेदक ध्वनि ने बहरेपन और तनाव को जन्म दिया है।
प्रदूषणों के दुष्परिणाम: उपर्युक्त प्रदूषणों के कारण मानव के स्वस्थ जीवन को खतरा पैदा हो गया है। खुली हवा में लम्बी सांस लेने तक को तरस गया है आदमी। गंदे जल के कारण कई बीमारियां फसलों में चली जाती हैं जो मनुष्य के शरीर में पहुंचकर घातक बीमारियां पैदा करती हैं। भोपाल गैस कारखाने से रिसी गैस के कारण हजारों लोग मर गए, कितने ही अपंग हो गए। पर्यावरण-प्रदूषण के कारण न समय पर वर्षा आती है, न सर्दी-गर्मी का चक्र ठीक चलता है। सुखा, बाढ़, ओला आदि प्राकृतिक प्रकोपों का कारण भी प्रदूषण है।
प्रदूषण के कारण : प्रदूषण को बढ़ाने में कल-कारखाने, वैज्ञानिक साधनों का अधिक उपयोग, फ्रिज, कूलर, वातानुकूलन, ऊर्जा संयंत्र आदि दोषी हैं। प्राकृतिक संतुलन का बिगड़ना भी मुख्य कारण है। वृक्षों को अंधा-धुंध काटने से मौसम का चक्र बिगड़ा है। घनी आबादी वाले क्षेत्रों में हरियाली न होने से भी प्रदूषण बढ़ा है।
सुधार के उपाय : विभिन्न प्रकार के प्रदूषण से बचने के लिए चाहिए कि अधिक से अधिक पेड़ लगाए जाएं, हरियाली की मात्रा अधिक हो। सड़कों के किनारे घने वृक्ष हों। आबादी वाले क्षेत्र खुले हों, हवादार हों, हरियाली से ओतप्रोत हों। कल-कारखानों को आबादी से दूर रखना चाहिए और उनसे निकले प्रदूषित मल को नष्ट करने के उपाय सोचना चाहिए।
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