Influence of Western Culture in India in hindi! भारतीय जीवन पर पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव
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(i) औद्योगीकरण:
अंग्रेजों के आने से भारत में नए-नए उद्योग-धन्धे बड़े । कारखानों में सभी धर्म और जातियों के लोग एक साथ काम करते हैं । उनकी समस्यायें एक है और उनके स्वार्थ भी एक हैं । साथ-साथ काम करने आदि से परस्पर मिलना-जुलना आवश्यक हो गया । ऐसी परिस्थिति में ऊँच-नीच का भाव चल नहीं सकता । अत: जातिगत भेदभाव के बन्धन ढीले पड़ने लगे ।
(ii) नगरीकरण:
औद्योगीकरण के कारण देश में सैकड़ों छोटे-बड़े नगर बढ़ने लगे और लाखों मजदूर गाँवों को छोड़कर नगरों में काम करने लगे । नगरों की भीड़भाड़ से दूर-दूर से आए हुए लोगों का जात-पांत का विचार कम होने लगा । उन पर जातीय पंचायतों का नियन्त्रण उठ जाने से भी जातीय बन्धन ढीले पड़ने लगे । इस प्रकार नगरीकरण ने जाति-प्रथा को बड़ा निर्बल किया ।
(iii) आवागमन के साधन:
आवागमन के साधनों से जाति के बन्धन ढीले पड़े । आवागमन के साधन रेल, बस, टैक्सी, रिक्शा आदि में यात्रा करने वाले छुआछूत का विचार नहीं रखते इसलिए जब पहले रेलगाड़ी चली तो लोगों ने घोर विरोध किया परन्तु अब सभी लोग रेलों और बसों का प्रयोग करते है ।
(iv) अंग्रेजी शिक्षा:
भारत में अंग्रेजी शिक्षा के प्रचार से जाति-प्रथा को बड़ा धक्का लगा । अंग्रेजी पढ़ने से लोगों में उदार विचारों का प्रचार हुआ । उनके रहन-सहन खान-पान, वेशभूषा के साथ-साथ उनके विचारों पर भी पश्चिम के विचारों स्वतन्त्रता समानता आदि का प्रभाव पड़ा ।
इससे पढ़े-लिखे लोगों में अन्तर्जातीय विवाह होने लगे । पढ़ाई के लिए विदेश जाने वाले लोग तो बहुधा पूरे साहब बनकर लौटते थे । प्रारम्भ में विदेश जाने का बड़ा विरोध था परन्तु अब धीरे-धीरे इस प्रकार की संकीर्णता उठती जा रही है । अंग्रेजी शिक्षा के प्रचार से स्त्रियों में स्वतन्त्रता और समानता की भावना फैली ।
(v) पाश्चात्य सभ्यता का प्रभाव:
पाश्चात्य सभ्यता के प्रभाव से भारत में जाति-प्रथा के बन्धन टूटने लगे । पाश्चात्य-सभ्यता के रंग में रंगकर सभी जातियों का खान-पान वेशभूषा, रहन-सहन रीति-रिवाज आदि एक से हो गए । उनमें जाति के स्थान पर वर्ग का भेद दिखाई देने लगा ।
कलकत्ता में जब पहला मैडिकल कालिज खुला तो मुर्दा चीरना अधर्म और जाति भ्रष्ट करने वाला माना जाता था । बाद में यह मान लिया गया कि शिक्षा की दृष्टि से मुर्दा चीरना बुरा नहीं है । पानी के पाइपों तथा होटलों ने खान-पान में छुआछूत के विचार को बहुत कम कर दिया ।
डॉ॰ भगवानदास ने लिखा है- ”जब काशी में नल लगाए गए तो लोगों ने उनका इस आधार पर विरोध किया कि जल विभाग में न जाने किन-किन जातियों के लोग काम करेंगे और ऊँची जाति के लोगों को उनके हाथ का पानी पीकर भ्रष्ट होना पड़ेगा, परन्तु अब सभी नल का पानी प्रयोग करते हैं ।” प्रारम्भ में अंग्रेजों के लाए हुए आलू टमाटर आदि को खानें में भी लोग संकोच करते थे । अब ब्राह्मण लोग बिस्कुट, आइस-क्रीम, अण्डों वाला केक आदि बेधड़क खाते हैं ।
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Explanation:
भारतीय जीवन पर पश्चिम के प्रभाव के सम्बन्ध में श्री हुमायूँ कबीर ने लिखा है- “चपल यूरोपीय भावनाओं ने प्रत्येक वस्तु की सूक्ष्म परीक्षा की । एक ओर तो भौतिक जीवन की अवस्थाओं में परिवर्तन हो गया । दूसरी ओर विश्वासों और परम्पराओं के आधारों को नष्ट कर दिया गया ।”
पश्चिम का यह प्रभाव भारतीय जीवन में जाति-प्रथा, शिक्षा, सामाजिक जागृति, राजनीतिक जागृति, संयुक्त परिवार व्यवस्था अर्थ-व्यवस्था विवाह की संस्था अस्पृश्यता तथा रीति-रिवाजों आदि पर पड़ा ।