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एक बैल गाडी।
प्राचीन काल में लोग लंबी दूरियाँ अधिकतर पैदल तय किया करते थे। उदाहरणार्थ, आदि शंकराचार्य ने पैदल पूरे भारत की यात्रा की थी। आज भी देश के ग्रामीण और नगरीय क्षेत्रों में भी प्रतिदिन लोग कई किलोमीटर की दूरी पैदल चलकर ही पूरी करते हैं।
मुंबई महानगर में, पैदल यात्रियों का पारगमन सुधारने के लिए, मुंबई महानगर विकास प्राधिकरण, ने मुंबई स्काइवॉक परियोजना के अर्न्तगत ५० से अधिक[2] [3] पैदल पुलों का निर्माण कार्य आरंभ किया है।
पालकी
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पालकी अमीरों और नवाबों का एक शानदार यात्रा का साधना था। पालकी शब्द संस्कृत 'पालकी' से आया है। तमिल में उसे 'पालाक्कु' कहतें हैं। पुर्तगाली पालकी को 'पालन क्वीम' बुलाते थे और अंग्रेजों उसे 'पालन क्वीन'। पुराने दिनों में इसका प्रमुख उपयोग देवता और मूर्तियों को ले जाना था। पुराने दिनों में इसका प्रमुख उपयोग देवता और मूर्तियों को ले जाना था। बाद में १५वी सदी में यह ग्यान हैं कि नवाबें इसे यत्रो के लिए उपयोग करते थे। अमीर परिवारों के लड़कियाँ औरतें को पालकी में घुमाया जाता था और उनके अनुरक्षण के लिए नर घोड़ों पर सवार करते थे। पन्द्रहवें सदी में अनेक मुसलमान परिवारों ने भी उपयोग किया। धीरे धीरे जमीनदार और राज-घराने के सदस्य भी इसका उपयोग करने लगें।
गाड़ी एवं घोड़ा गाड़ी
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बैलगाड़ियों का उपयोग पारंपरिक रूप से पर्वहन साधन के रूप में किया जाता रहा है, मुख्यतः भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में। आज भी भारत के नगरों और ग्रामों में बैलगाड़ियां देखी जा सकतीं है। हाल ही के वर्षों में कुछ नगरों में दिन के समय बैलगाड़ियों और अन्य धीमे चलने वाले वाहनों के चलने पर प्रतिबंध लगाया है।
अंग्रेज़ों के आगमन के साथ ही घोड़ा गाड़ियों में बहुत से प्रबलतीव्र सुधार हुए हैं जिन्हें यातायात के लिए प्रारंभिक दिनों से उपयोग में लाया जा रहा है। आज भी, छोटे कस्बों इनका उपयोग किया जाता है और इन्हें तांगा या बग्गी कहा जाता है। मुंबई में पर्यटकों को लुभाने के लिए विक्टोरिया काल की कुछ बग्गीयां अभी भी चलन में हैं लेकिन अब यह बग्गीयां कम ही भारत में पाई जाती हैं।
साइकिल रिक्शा
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पिछली सदी के प्रारंभ से ही रिक्शे लोकप्रिय हैं और अभी भी भारत के ग्रामों और कई नगरों में चलन में हैं। यह तिपहिया साइकिल से आकार में बड़े होते हैं जिसमें दो या तीन लोग पीछे की ऊँची सीट पर बैठते हैं और एक व्यक्ति आगे की सीट पर बैठकर रिक्शा खिंचता है। इसे चलाने के लिए साइकिल के समान ही पैडल पर बल लगाना पड़ता है। नगरीय क्षेत्रों में अब अधिकतर ऑटो रिक्शा ने इनका स्थान ले लिया है।
साइकिल
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भारत में साइकिल का अर्थ दोपहिया सइकिल से होता है। यह अभी भी भारत में यातायात का प्रमुख साधन है। पहले से कहीं अधिक संख्या में आज भारत में लोग साइकिल खरीदने में समर्थ हैं। २००५ में, भारत के ४०% से भी अधिक परिवरों के पास कम से कम एक साइकिल थी। राज्यीय स्तर पर साइकिल स्वामित्व ३०% से ७०% के बीच है।