Information about whispering gallery in hindi
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गोल गुम्बज़ या गोल गुम्बद, फ़ारसी گل گنبذ[1] बीजापुर के सुल्तान मुहम्मद आदिल शाह का मकबरा है और बीजापुर, कर्णाटक में स्थित है। इसको फ़ारसी वास्तुकार दाबुल के याकूत ने १६५६ ई० में निर्माण करवाया था। हालांकि मूल रूप में साधारण निर्माण होने पर भी अपनी स्थापत्य विशेषताओं के कारण दक्खिन वास्तुकला का विजय स्तंभ माना जाता है। [2]इसकी संरचना के मूल में 47.5 मीटर (156 फीट) की भुजाओं वाला एक घन है, जिसके उपरस्थ 44 मी॰ (144 फीट) बाहरी व्यास वाला एक विशाल गुम्बद है। दो समान. कोण प घूमते हुए चतुर्भुजों से बनने वाले एक-दूसरे को काटते हुए आठ मेहराबों से गुंथा हुआ गुम्बदीय त्रिभुज-कोण बनता है जो इस गुम्बद को उठाये हुए हैं। इस घन के चारों कोणों पर गुम्बदनुमा छतरी से ढंके हुए अष्टकोणीय सप्त-तलीय अट्टालिकाएं या मिनारें बनी हैं। इनके अन्दर सीढ़ियाँ भी हैं।[2] इन प्रत्येक मीनारों के ऊपरी तल बड़े गुम्बद को घेरते हुए गलियारे में खुलता है। मकबरे के मुख्य हॉल के भीतर चारों ओर सीढ़ियों से घिरा हुआ एक चौकोर चबूतरा है। इस चबूतरे के मध्य एक कब्र का पत्थर है, जिसके नीचे इसकी असल कब्र बनी है। आदिल शाही वंश के मकबरों में ये इस प्रकार का एकमात्र उदाहरण है। उत्तरी ओर के मध्य में, एक वृहत अर्ध-अष्टकोणीय आकार बाहर को निकलता है।[2] 1,700 मी2 (18,000 वर्ग फुट),[3] क्षेत्रफ़ल वाला यह मकबरा विश्व का सबसे बड़ा एकल-कक्ष और बिना किसी मध्य आधार वाला निर्माण है।
मकबरे के गुम्बद के आन्तरिक परिधि पर एक गोलाकार गलियारा बना हुआ है, जिसे अंग्रेज़ों ने "व्हिस्परिंग गैलरी" अर्थात फ़ुस्फ़ुसाने वाला गलियारा नाम दिया है। इस गलियारे के निर्माण में प्रयुक्त ध्वनि-विज्ञान के वास्तु में सम्मिलन के कारण यहां धीमे से फ़ुस्फ़ुसाया हुआ एक शब्द भी इसके व्यास के ठीक दूसरी ओर एकदम स्पष्ट सुनाई देता है। [3]