int a = 1, b = 2, c = 3;
Expression: a - b * c , c / a * b , a++ + --b , b = a = c
int i = 0, j = 1, k = 2;
Expression: i && j ,!!I , i || !k , (i && (j = k)) || (k > j)
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Answer:
आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः |
नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति ||
अर्थार्थ:- मनुष्य का सबसे बड़ा दुश्मन उसका आलस्य है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र
नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |
अनादरो विलम्बश्च वै मुख्यम निष्ठुर वचनम
पश्चतपश्च पञ्चापि दानस्य दूषणानि च।।
अर्थार्थ:- अपमान करके दान देना, विलंब(देर) से देना, मुख फेर के देना, कठोर वचन बोलना और देने के बाद पश्चाताप करना| ये पांच क्रियाएं दान को दूषित कर देती हैं।
यस्तु सञ्चरते देशान् सेवते यस्तु पण्डितान् !
तस्य विस्तारिता बुद्धिस्तैलबिन्दुरिवाम्भसि !!
अर्थार्थ:- वह व्यक्ति जो अलग अलग जगहों या देशो में घूमकर (पंडितों) विद्वानों की सेवा करता है, उसकी बुद्धि का विस्तार(विकास) उसी प्रकार होता है, जैसे तेल की बूंद पानी में गिरने के बाद फ़ैल जाती है|
श्रोत्रं श्रुतेनैव न कुंडलेन, दानेन पाणिर्न तु कंकणेन ,
विभाति कायः करुणापराणां, परोपकारैर्न तु चन्दनेन ||
अर्थार्थ:- कुंडल पहन लेने से कानों की शोभा नहीं बढ़ती, अपितु ज्ञान की बातें सुनने से होती है | हाथ, कंगन धारण करने से सुन्दर नहीं होते, उनकी शोभा दान करने से बढ़ती हैं | सज्जनों का शरीर भी चन्दन से नहीं अपितु परहित में किये गये कार्यों से शोभायमान होता हैं।
यथा ह्येकेन चक्रेण न रथस्य गतिर्भवेत् |
एवं परुषकारेण विना दैवं न सिद्ध्यति ||
अर्थार्थ:- जैसे एक पहिये से रथ नहीं चल सकता है उसी प्रकार बिना पुरुषार्थ के भाग्य सिद्ध नहीं हो सकता है|
परो अपि हितवान् बन्धुः बन्धुः अपि अहितः परः !
अहितः देहजः व्याधिः हितम् आरण्यं औषधम् !!
अर्थार्थ:- कोई अपरिचित व्यक्ति भी अगर आपकी मदद करे तो उसे अपने परिवार के सदस्य की तरह ही महत्व दे और अगर परिवार का कोई अपना सदस्य भी आपको नुकसान पहुंचाए तो उसे महत्व देना बंद कर दे. ठीक उसी तरह जैसे शरीर के किसी अंग में कोई बीमारी हो जाए, तो वह हमें तकलीफ पहुंचाती है, जबकि जंगल में उगी हुई औषधी हमारे लिए लाभकारी होती है|