introduction of Premchand for Hindi project
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◆ मुंशी प्रेमचंद ◆
हिंदी एक ऐसी समृद्ध भाषा है, जो अपने साहित्य और साहित्कारों की दृष्टि से पर्याप्त समुन्नत कही जा सकती है। हिंदी सहित्य के इतिहास में समय-समय पर ऐसे अनेक साहित्कार हुए हैं जिन्होनें अपने लेखन द्वारा देश ही नही विश्व की विचारधारा को भी प्रभावित किया ।
प्रेमचंद भी एक ऐसे साहित्यकार थे, जो सच्चे गांधीवादी और समाजहित के चिंतक और विचारक के रूप में हमारे सामने आते है। प्रेमचंद का जन्म 1880 में काशी के निकट लमही गाँव में कायस्थ कुल में हुआ था। उनके बचपन का नाम घनपत राय था। पिता की अल्पायु में मृत्यु हो जाने के कारण इनका जीवन संघर्षों में बीता। स्कूल में बीस रुपये की अध्यापक की नौकरी करते हुए इन्होंने बी• ए • की परीक्षा उत्तीर्ण की और फिर स्कूलों के सबडिप्टी इंस्पेक्टर हो गए, लेकिन गाँधी जी से प्रभावित होकर नौकरी छोड़ दी और देश- सेवा में जुट गए। इन्होनें हंस, मर्यादा, माधुरी पत्रिकाएँ और जागरण पत्रों का संपादन किया। संघर्षों से जूझते हुए रोगग्रस्त होकर 1936 ई. में इनकी मृत्यु हो गई।
प्रेमचंद उपन्यास सम्राट और प्रसिद्ध कहानीकार के रुप में प्रसिद्ध है। पहले ये ‘ नवाबराय ’ नाम से उर्दू में और बाद में प्रेमचंद्र नाम से हिंदी में लिखने लगे। इनके सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यास गोदान, गबन, निर्मला, कर्मभूमि, रंगभूमि, सेवा सदन आदि है। इन्होनें लगभग 300 कहानियाँ और कुछ नाटक भी लिखे।
प्रेमयंद ने उपन्यास और कहानी के क्षेत्र में नवीन दृष्टिकोण को जन्म दिया जो आदर्शोन्मुख यथार्थवाद कहलाया । उन्होनें साहित्य में कोरी कल्पना के स्थान पर भोगे हुए यथार्थ को चित्रित किया। उनके पात्र प्रारंभ में दुश्चरित्र होते है , लेकिन अंत तक आते - आते वे परिवर्तित हो जाते हैं। समाज के समक्ष यही आदर्श प्रस्तुत करना प्रेमचंद के साहित्य का लक्ष्य है । प्रेमचंद के पात्र समाज के वे उपेक्षित, दीन- हीन, किसान, मजदूर है जो सदा से ही पीड़ित एंव उपेक्षित रहे हैं। प्रेमचंद के साहित्य को पढ़नेवाला प्रत्येक व्यक्ति उनके पात्रों और परिस्थतियों के साथ खुद को जुड़ा महसूस करता है और यही प्रेमचंद की सर्वोत्कृष्ट उपलब्धि है।
प्रेमचंद ने अपने साहित्य में अन्याय के प्रति विरोध, पाखंड का उन्मूलन और वर्तमान पीढ़ी की प्रगतिशीलता का स्वर मुखरित किया है। अपने अनुभवों और भावों को जीवंतता देने के लिए उन्होंने सर्वत्र, स्पष्ट, सरल, स्वाभाविक एंव सहज ग्राह्य खड़ी बोली का प्रयोग किया है, जिसमें आवश्यकतानुसर अन्य भाषाओं का भी स्थान- स्थान पर प्रयोग हुआ है।
वस्तुत: प्रेमचंद एक ऐसे मानवतावादी उपन्यासकार और कहानीकार थे जिन्होनें दलित मानवता कों ऊपर उठाने के लिए ही अपनी लेखनी चलाई । वे ऐसे प्रथम उपन्यासकार कहे जा सकते है , जिन्होनें उस समय की सामंती व्यवस्था पर कड़ा प्रहार करते हुए निम्न मध्यमवर्गीय जन को सांत्वना और सहानुभूति देकर विकास का ठोस आधार दिया। इसीलिए उन्हें हिंन्दी सहित्य में उपन्यास सम्राट कहा जाता है। इतनी सारी खूबियों के कारण ही प्रेमचंद मेरे प्रिय लेखक है।
हिंदी एक ऐसी समृद्ध भाषा है, जो अपने साहित्य और साहित्कारों की दृष्टि से पर्याप्त समुन्नत कही जा सकती है। हिंदी सहित्य के इतिहास में समय-समय पर ऐसे अनेक साहित्कार हुए हैं जिन्होनें अपने लेखन द्वारा देश ही नही विश्व की विचारधारा को भी प्रभावित किया ।
प्रेमचंद भी एक ऐसे साहित्यकार थे, जो सच्चे गांधीवादी और समाजहित के चिंतक और विचारक के रूप में हमारे सामने आते है। प्रेमचंद का जन्म 1880 में काशी के निकट लमही गाँव में कायस्थ कुल में हुआ था। उनके बचपन का नाम घनपत राय था। पिता की अल्पायु में मृत्यु हो जाने के कारण इनका जीवन संघर्षों में बीता। स्कूल में बीस रुपये की अध्यापक की नौकरी करते हुए इन्होंने बी• ए • की परीक्षा उत्तीर्ण की और फिर स्कूलों के सबडिप्टी इंस्पेक्टर हो गए, लेकिन गाँधी जी से प्रभावित होकर नौकरी छोड़ दी और देश- सेवा में जुट गए। इन्होनें हंस, मर्यादा, माधुरी पत्रिकाएँ और जागरण पत्रों का संपादन किया। संघर्षों से जूझते हुए रोगग्रस्त होकर 1936 ई. में इनकी मृत्यु हो गई।
प्रेमचंद उपन्यास सम्राट और प्रसिद्ध कहानीकार के रुप में प्रसिद्ध है। पहले ये ‘ नवाबराय ’ नाम से उर्दू में और बाद में प्रेमचंद्र नाम से हिंदी में लिखने लगे। इनके सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यास गोदान, गबन, निर्मला, कर्मभूमि, रंगभूमि, सेवा सदन आदि है। इन्होनें लगभग 300 कहानियाँ और कुछ नाटक भी लिखे।
प्रेमयंद ने उपन्यास और कहानी के क्षेत्र में नवीन दृष्टिकोण को जन्म दिया जो आदर्शोन्मुख यथार्थवाद कहलाया । उन्होनें साहित्य में कोरी कल्पना के स्थान पर भोगे हुए यथार्थ को चित्रित किया। उनके पात्र प्रारंभ में दुश्चरित्र होते है , लेकिन अंत तक आते - आते वे परिवर्तित हो जाते हैं। समाज के समक्ष यही आदर्श प्रस्तुत करना प्रेमचंद के साहित्य का लक्ष्य है । प्रेमचंद के पात्र समाज के वे उपेक्षित, दीन- हीन, किसान, मजदूर है जो सदा से ही पीड़ित एंव उपेक्षित रहे हैं। प्रेमचंद के साहित्य को पढ़नेवाला प्रत्येक व्यक्ति उनके पात्रों और परिस्थतियों के साथ खुद को जुड़ा महसूस करता है और यही प्रेमचंद की सर्वोत्कृष्ट उपलब्धि है।
प्रेमचंद ने अपने साहित्य में अन्याय के प्रति विरोध, पाखंड का उन्मूलन और वर्तमान पीढ़ी की प्रगतिशीलता का स्वर मुखरित किया है। अपने अनुभवों और भावों को जीवंतता देने के लिए उन्होंने सर्वत्र, स्पष्ट, सरल, स्वाभाविक एंव सहज ग्राह्य खड़ी बोली का प्रयोग किया है, जिसमें आवश्यकतानुसर अन्य भाषाओं का भी स्थान- स्थान पर प्रयोग हुआ है।
वस्तुत: प्रेमचंद एक ऐसे मानवतावादी उपन्यासकार और कहानीकार थे जिन्होनें दलित मानवता कों ऊपर उठाने के लिए ही अपनी लेखनी चलाई । वे ऐसे प्रथम उपन्यासकार कहे जा सकते है , जिन्होनें उस समय की सामंती व्यवस्था पर कड़ा प्रहार करते हुए निम्न मध्यमवर्गीय जन को सांत्वना और सहानुभूति देकर विकास का ठोस आधार दिया। इसीलिए उन्हें हिंन्दी सहित्य में उपन्यास सम्राट कहा जाता है। इतनी सारी खूबियों के कारण ही प्रेमचंद मेरे प्रिय लेखक है।
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AkashMandal:
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Thank u very much for the indroduction it helped me a lot.
Out of it one can also make the conclusion
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