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आज गाड़ी में चलते-चलते बॉलीवुड का एक और गीत सुना जिससे ध्यान में आया है कि यहां भी हिंदू धर्म पर प्रहार है।फिल्म है, राजकुमार (शम्मी कपूर - साधना) गीतकार - हसरत जयपुरीगीत है, "इस रंग बदलती दुनिया में, इंसान की नीयत ठीक नहीं, निकला न करो तुम सज-धज कर, ईमान की नीयत ठीक नहीं.."गीत बेजोड़ है इसमें कोई शक नहीं लेकिन एक जगह पर एक शब्द मुझे थोड़ा अटपटा लगता है । हसरत जयपुरी जैसे गीतकार की बांयीं उंगली का खेल ही होता अगर उन्होंने इसको सुधार दिया होता ।गीत की अंतिम कड़ी पर ध्यान दें - "मैं कैसे खुदा-हाफिज कह दूं, मुझको तो किसी का यकीन नहीं,छुप जाओ हमारी आंखों में, 'भगवान' की नीयत ठीक नहीं..""जब पहली पंक्ति में 'खुदा-हाफिज' आया है तो अंतिम लाइन में 'भगवान' होना चाहिए था या कुछ और? कहने को दूसरा पक्ष कह सकता है कि 'ईमान' शब्द तो आ ही गया है तो उसके प्रत्युत्तर में भी यह कहा जा सकता है कि 'भगवान' शब्द को लाने की जरूरत क्या थी ? क्या, सेकुलरिज्म की मांग थी क्या? अब आप ही सोचिए । पोस्ट।
फिल्म है, राजकुमार (शम्मी कपूर - साधना) गीतकार - हसरत जयपुरी
गीत है, "इस रंग बदलती दुनिया में, इंसान की नीयत ठीक नहीं, निकला न करो तुम सज-धज कर, ईमान की नीयत ठीक नहीं.."
गीत बेजोड़ है इसमें कोई शक नहीं लेकिन एक जगह पर एक शब्द मुझे थोड़ा अटपटा लगता है । हसरत जयपुरी जैसे गीतकार की बांयीं उंगली का खेल ही होता अगर उन्होंने इसको सुधार दिया होता ।
गीत की अंतिम कड़ी पर ध्यान दें -
"मैं कैसे खुदा-हाफिज कह दूं,
मुझको तो किसी का यकीन नहीं,
छुप जाओJ हमारी आंखों में,
'भगवान' की नीयत ठीक नहीं..""
जब पहली पंक्ति में 'खुदा-हाफिज' आया है तो अंतिम लाइन में 'भगवान' होना चाहिए था या कुछ और? कहने को दूसरा पक्ष कह सकता है कि 'ईमान' शब्द तो आ ही गया है तो उसके प्रत्युत्तर में भी यह कहा जा सकता है कि 'भगवान' शब्द को लाने की जरूरत क्या थी ?
क्या, सेकुलरिज्म की मांग थी क्या?
अब आप ही सोचिए ।
कॉपीड पोस्ट।