is punishment in school is good or bad
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## बच्चों पर शारीरिक दंड। ##
शारीरिक दंड को समाप्त कर दिया जाना चाहिए।
बच्चे आम तौर पर बड़ों की बात नहीं मानते हैं। क्योंकि वे जो भी करते हैं, उनके नतीजे उन्हें नहीं मालूम हैं। इसलिए बडों को पर्याप्त समय , सब्र, सहनशीलता या क्षमागुण नहीं होने के कारण बच्चों को तुरंत दंडित करते हैं। वे आशा करते हैं कि दर्द बच्चों को उनका कहना मानने पर मजबूर कर देगा । और उन्हें याद दिलाते रहेगा ताकि वे शरारती कृत्य नहीं करें।
लेकिन कुछ माता पिता और उपाध्याय बुरे घावों से बच्चों को घायल और बाधित करते हैं। और बच्चों को शारीरिक रूप से हानि पहुँचाते हैं । क्रूर होकर उस हद तक सजा देने की जरूरत नहीं है। कुछ स्कूलों को डर होता है कि उनके स्कूल के छात्रों का सालीन प्रदर्शन में कमी न आए ।
शिक्षक और माता-पिता अपने बच्चों को बेहतर काम करने के लिए सरल उपाय और प्यार का सहारा लेना चाहिए। कडी अनुशासन और गंभीर दंड से अच्छे आचरण को नहीं सिखाया जा सकता है । बल्कि अक्सर प्रतिशोधी और कड़वी भावनाएं बच्चों के मन में जन्म लेती हैं।
सबसे अच्छा तरीका है तार्किक संभाषण और तर्क सीधे सीधे बच्चों के साथ करना है। धीरे धीरे बच्चों के दिमाग में एक क्रमिक परिवर्तन आएगा। बच्चों के ऊपर विश्वास और अपने आप पर आत्मविश्वास (उन्हें समझाने से पहले) होना चाहिए। शारीरिक सजा की आवश्यकता से बचें ।
शारीरिक सजा मानव गरिमा से नीचा है । इसे उचित संस्कृति और शैक्षिक योग्यता नहीं होने के कारण , माता-पिता और शिक्षक चुनते हैं। बच्चों को बुद्धि , झ्यान और कार्रवाई प्रदान करने के लिए बेहतर तरीकों का उपयोग करना चाहिये ।
राष्ट्रीय शैक्षिक नीति के अनुसार शारीरिक दंड की अनुमति नहीं है। हाल ही में हम सब ने इस वजह से छात्रों को पहुंची स्थायी क्षति के कई मामलों के बारे में पढ़ा और सुना है। इसके अलावा मनोवैज्ञानिकों ने शारीरिक दंड के खिलाफ सलाह भी दी है ।
शारीरिक दंड को समाप्त कर दिया जाना चाहिए।
बच्चे आम तौर पर बड़ों की बात नहीं मानते हैं। क्योंकि वे जो भी करते हैं, उनके नतीजे उन्हें नहीं मालूम हैं। इसलिए बडों को पर्याप्त समय , सब्र, सहनशीलता या क्षमागुण नहीं होने के कारण बच्चों को तुरंत दंडित करते हैं। वे आशा करते हैं कि दर्द बच्चों को उनका कहना मानने पर मजबूर कर देगा । और उन्हें याद दिलाते रहेगा ताकि वे शरारती कृत्य नहीं करें।
लेकिन कुछ माता पिता और उपाध्याय बुरे घावों से बच्चों को घायल और बाधित करते हैं। और बच्चों को शारीरिक रूप से हानि पहुँचाते हैं । क्रूर होकर उस हद तक सजा देने की जरूरत नहीं है। कुछ स्कूलों को डर होता है कि उनके स्कूल के छात्रों का सालीन प्रदर्शन में कमी न आए ।
शिक्षक और माता-पिता अपने बच्चों को बेहतर काम करने के लिए सरल उपाय और प्यार का सहारा लेना चाहिए। कडी अनुशासन और गंभीर दंड से अच्छे आचरण को नहीं सिखाया जा सकता है । बल्कि अक्सर प्रतिशोधी और कड़वी भावनाएं बच्चों के मन में जन्म लेती हैं।
सबसे अच्छा तरीका है तार्किक संभाषण और तर्क सीधे सीधे बच्चों के साथ करना है। धीरे धीरे बच्चों के दिमाग में एक क्रमिक परिवर्तन आएगा। बच्चों के ऊपर विश्वास और अपने आप पर आत्मविश्वास (उन्हें समझाने से पहले) होना चाहिए। शारीरिक सजा की आवश्यकता से बचें ।
शारीरिक सजा मानव गरिमा से नीचा है । इसे उचित संस्कृति और शैक्षिक योग्यता नहीं होने के कारण , माता-पिता और शिक्षक चुनते हैं। बच्चों को बुद्धि , झ्यान और कार्रवाई प्रदान करने के लिए बेहतर तरीकों का उपयोग करना चाहिये ।
राष्ट्रीय शैक्षिक नीति के अनुसार शारीरिक दंड की अनुमति नहीं है। हाल ही में हम सब ने इस वजह से छात्रों को पहुंची स्थायी क्षति के कई मामलों के बारे में पढ़ा और सुना है। इसके अलावा मनोवैज्ञानिकों ने शारीरिक दंड के खिलाफ सलाह भी दी है ।
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