इस अपठित गद्यांश को पढ़िए और पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए सत्य का स्वरूप चिरंतन है। उसकी अभिव्यक्ति जीवन में ही होती है। साहित्य उस चिरंतन सत्य को ही जीवन में उपलब्ध करने की चेष्टा करता है। जब तक मनुष्य प्रकृति के नजदीक रहता है तब तक वह प्रकृति में ही सत्य का स्वरूप देखता है। जब प्रकृति से उसकी नज़दीकी टूट जाती है तो वह अपने अंदर निहित शक्ति में ही सत्य को ढूँढ़ने लगता है और अनुभव करने लगता है। जब उसकी मानसिक स्थिति प्रकृति और उसके बीच व्यवधान खड़ा कर देती है तब वह अशांति का अनुभव करता है। अंत में जब वह प्रकृति पर आत्मशक्ति के बल पर विजय पा लेता है तब वह भौतिक जगत की अवहेलना करने लगता है। फल यह होता है कि अपार्थिव
जगत को सत्य मानकर उसपर अपने संपूर्ण जीवन की रचना करने का प्रयत्न करता है। तब उसे
सत्य के सच्चे स्वरूप के दर्शन होते हैं।
i. सत्य का स्वरूप कैसा है?
i. सत्य की अभिव्यक्ति कहाँ होती है?
iii. व्यक्ति सत्य का स्वरूप कहाँ-कहाँ देखता है?
iv. व्यक्ति भौतिक-जगत की अवहेलना कब करने लगता है?
. गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।follow me chance to win iPhoneइस अपठित गद्यांश को पढ़िए और पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए सत्य का स्वरूप चिरंतन है। उसकी अभिव्यक्ति जीवन में ही होती है। साहित्य उस चिरंतन सत्य को ही जीवन में उपलब्ध करने की चेष्टा करता है। जब तक मनुष्य प्रकृति के नजदीक रहता है तब तक वह प्रकृति में ही सत्य का स्वरूप देखता है। जब प्रकृति से उसकी नज़दीकी टूट जाती है तो वह अपने अंदर निहित शक्ति में ही सत्य को ढूँढ़ने लगता है और अनुभव करने लगता है। जब उसकी मानसिक स्थिति प्रकृति और उसके बीच व्यवधान खड़ा कर देती है तब वह अशांति का अनुभव करता है। अंत में जब वह प्रकृति पर आत्मशक्ति के बल पर विजय पा लेता है तब वह भौतिक जगत की अवहेलना करने लगता है। फल यह होता है कि अपार्थिव
जगत को सत्य मानकर उसपर अपने संपूर्ण जीवन की रचना करने का प्रयत्न करता है। तब उसे
सत्य के सच्चे स्वरूप के दर्शन होते हैं।
i. सत्य का स्वरूप कैसा है?
i. सत्य की अभिव्यक्ति कहाँ होती है?
iii. व्यक्ति सत्य का स्वरूप कहाँ-कहाँ देखता है?
iv. व्यक्ति भौतिक-जगत की अवहेलना कब करने लगता है?
. गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।
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Step-by-step explanation:
1) सत्य का स्वरूप चिरंतर है।
2) सत्य की अभिव्यक्ति जीवन में होती है।
3) जब तक मनुष्य प्रकृति के नजदीक रहता है तब तक वह प्रकृति में ही सत्य का स्वरूप देखता है।
4) जब वह प्रकृति पर आत्मशक्ति के बल पर विजय पा लेता है तब वह भौतिक जगत की अवहेलना करने लगता है।
5) सत्य के सच्चे स्वरूप।
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i. सत्य का स्वरूप चिरंतन है।
ii. सत्य की अभिव्यक्ति जीवन में ही होती है।
iii. जब तक मनुष्य प्रकृति के नजदीक रहता है तब तक वह प्रकृति में ही सत्य का स्वरूप देखता है।
iv. जब प्रकृति से उसकी नजदीकी टूट जाती है तो वह अपने अंदर निहित शक्ति में ही सत्य को ढूंढने लगता है और अनुभव करने लगता है। जब उसकी मानसिक स्थिति प्रकृति और उसके बीच व्यवधान खड़ा कर देती है तब वह अंशाति अनुभव करता है। अंत में जब वह प्रकृति पर आत्मशक्ति के बल पर विजय पा लेता है तब वह भौतिक जगत की अवहेलना करने लगता है।
v. सत्य और प्रकृति के बीच संबंध
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