Social Sciences, asked by PragyaTbia, 1 year ago

इस बारे में चर्चा कीजिए कि औपनिवेशिक सरकार ने निम्नलिखित कानून क्यों बनाए? यह भी बताइए कि इन कानूनों से चरवाहों के जीवन पर क्या असर पड़ा :परती भूमि नियमावली वन अधिनियमअपराधी जनजाति अधिनियमचराई कर

Answers

Answered by nikitasingh79
21

उत्तर :  

(क) परती भूमि नियमावली :  

औपनिवेशिक सरकार चरागाह भूमि क्षेत्र को परती भूमि मानती थी। उसके अनुसार चरागाह भूमि से न तो कर मिलता था और  न ही फसल मिलती थी। औपनिवेशिक सरकार का अस्तित्व अधिक से अधिक भूमि कर पर टिका हुआ था। इसलिए औपनिवेशिक सरकार ने भारत में भूमि नियम लागू किए।इन नियमों द्वारा बहुत सी चरागाह भूमि को कृषि के अधीन लाया गया। फलस्वरूप भारत में चरागाह क्षेत्र कम हो गया और चरवाहों के लिए अपने पशुओं को चराने की समस्या उत्पन्न हो गई।

(ख) वन अधिनियम :  

19वीं शताब्दी के मध्य में भारत के विभिन्न भागों में विभिन्न वन अधिनियम बनाए गए। इन अधिनियमों द्वारा देवदार तथा साल आदि  के आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण वनों को आरक्षित घोषित कर दिया गया। चरवाहे इन वनों का प्रयोग नहीं कर सकते थे।जिन वनों में उन्हें प्रवेश करने की अनुमति थी उन वनों में भी उनकी गतिविधियों पर नियंत्रण रखा जाता था। उन्हें इन वनों में प्रवेश के लिए परमिट लेना पड़ता था। वनों में जाने व वापिस आने का समय भी निश्चित कर दिया गया । चरवाहे निश्चित दिनों तक ही वन का प्रयोग कर सकते थे। इसके बाद उनका प्रवेश वर्जित था। यदि वे निश्चित दिनों से अधिक समय तक वन में रहते थे तो उन पर जुर्माना लगा दिया जाता था।

सच तो यह है कि इन वन अधिनियम ने खानाबदोशों  (आदिवासियों)  के लिए भोजन की समस्या को विकराल बना दिया।  अब उन्हें अपने पशुओं की संख्या कम करनी पड़ी इसके अतिरिक्त उनके पशुओं की गुणवत्ता में भी कमी आई।

(ग) अपराध जनजाति अधिनियम :  

अंग्रेजी सरकार केवल अस्थाई लोगों को विश्वसनीय मानती थी। उनका मानना था कि जो लोग ऋतु परिवर्तन के साथ अपना स्थान अथवा व्यवसाय बदल लेते हैं, वे अपराधी हैं।इसलिए अंग्रेजी सरकार ने 1871 ई० में अपराध जनजाति अधिनियम लागू किया। इसके अनुसार कई चलवासी कबीलों को प्राकृतिक रूप से और जन्म से अपराधी मान लिया गया। अब उन्हें एक निश्चित गांव में ही रहना पड़ता था। वे बिना परमिट के अपना स्थान नहीं बदल सकते थे।  गांव की पुलिस उन पर लगातार निगरानी रखती थी।

(घ) चराई कर :  

19वीं शताब्दी के मध्य में अंग्रेजी सरकार ने अपनी आय बढ़ाने के लिए कई नए कर लगाएं। अब चरागाहों में चराई करने वाले पशुओं पर भी कर लगा दिया गया । यह कर प्रति पशु पर लिया जाता था । कर वसूली के तरीकों में परिवर्तन के साथ साथ यह कर निरंतर बढ़ता गया। पहले तो यह कर सरकार स्वयं वसूल करती थी परंतु बाद में यह काम ठेकेदारों को सौंप दिया गया । ठेकेदार बहुत अधिक कर वसूल करते थे और सरकार को निश्चित कर ही देते थे । फल स्वरुप खानाबदोशों का शोषण होने लगा। अतः  मजबूर हो कर उन्हें अपने पशुओं की संख्या कम करनी पड़ी। फलस्वरूप खानाबदोशों के लिए रोटी की समस्या उत्पन्न हो गई।

आशा है कि उत्तर आपकी मदद करेगा।।।

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Answered by ContentBots1
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(क) परती भमि नियमावली :

औपनिवेशिक सरकार चरागाह भूमि क्षेत्र को परती भूमि मानती थी। उसके अनुसार चरागाह भूमि से न तो कर मिलता था और न ही फसल मिलती थी। औपनिवेशिक सरकार का अस्तित्व अधिक से अधिक भूमि कर पर टिका हुआ था। इसलिए औपनिवेशिक सरकार ने भारत में भूमि नियम लागू किए।इन नियमों द्वारा बहुत सी चरागाह भूमि को कृषि के अधीन लाया गया। फलस्वरूप भारत में चरागाह क्षेत्र कम हो गया और चरवाहों के लिए अपने पशुओं को चराने की समस्या उत्पन्न हो गई।

(ख) वन अधिनियम :

19वीं शताब्दी के मध्य में भारत के विभिन्न भागों में विभिन्न वन अधिनियम बनाए गए। इन अधिनियमों द्वारा देवदार तथा साल आदि के आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण वनों को आरक्षित घोषित कर दिया गया। चरवाहे इन वनों का प्रयोग नहीं कर सकते थे।जिन वनों में उन्हें प्रवेश करने की अनुमति थी उन वनों में भी उनकी गतिविधियों पर नियंत्रण रखा जाता था। उन्हें इन वनों में प्रवेश के लिए परमिट लेना पड़ता था। वनों में जाने व वापिस आने का समय भी निश्चित कर दिया गया । चरवाहे निश्चित दिनों तक ही वन का प्रयोग कर सकते थे। इसके बाद उनका प्रवेश वर्जित था। यदि वे निश्चित दिनों से अधिक समय तक वन में रहते थे तो उन पर जुर्माना लगा दिया जाता था।

सच तो यह है कि इन वन अधिनियम ने खानाबदोशों (आदिवासियों) के लिए भोजन की समस्या को विकराल बना दिया। अब उन्हें अपने पशुओं की संख्या कम करनी पड़ी इसके अतिरिक्त उनके पशुओं की गुणवत्ता में भी कमी आई।

(ग) अपराध जनजाति अधिनियम :

अंग्रेजी सरकार केवल अस्थाई लोगों को विश्वसनीय मानती थी। उनका मानना था कि जो लोग ऋतु परिवर्तन के साथ अपना स्थान अथवा व्यवसाय बदल लेते हैं, वे अपराधी हैं।इसलिए अंग्रेजी सरकार ने 1871 ई० में अपराध जनजाति अधिनियम लागू किया। इसके अनुसार कई चलवासी कबीलों को प्राकृतिक रूप से और जन्म से अपराधी मान लिया गया। अब उन्हें एक निश्चित गांव में ही रहना पड़ता था। वे बिना परमिट के अपना स्थान नहीं बदल सकते थे। गांव की पुलिस उन पर लगातार निगरानी रखती थी।

(घ) चराई कर :

19वीं शताब्दी के मध्य में अंग्रेजी सरकार ने अपनी आय बढ़ाने के लिए कई नए कर लगाएं। अब चरागाहों में चराई करने वाले पशुओं पर भी कर लगा दिया गया । यह कर प्रति पशु पर लिया जाता था । कर वसूली के तरीकों में परिवर्तन के साथ साथ यह कर निरंतर बढ़ता गया। पहले तो यह कर सरकार स्वयं वसूल करती थी परंतु बाद में यह काम ठेकेदारों को सौंप दिया गया । ठेकेदार बहुत अधिक कर वसूल करते थे और सरकार को निश्चित कर ही देते थे । फल स्वरुप खानाबदोशों का शोषण होने लगा। अतः मजबूर हो कर उन्हें अपने पशुओं की संख्या कम करनी पड़ी। फलस्वरूप खानाबदोशों के लिए रोटी की समस्या उत्पन्न हो गई।

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