इस्लाम शासकों ने अपनी प्रजा के साथ तालमेल कैसे मिटाएं
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जर्मन-अमरीकी इतिहासकार एंड्रे गंडर फ्रैंक ने 'रीओरिएंट: ग्लोबल इकॉनमी इन द एशियन एज' नाम की किताब 1998 में लिखी थी. फ्रैंक का कहना था कि अठारहवीं शताब्दी के दूसरे हिस्से तक भारत और चीन का आर्थिक रूप से दबदबा था. ज़ाहिर है इसी दौर में सारे मुस्लिम शासक भी हुए.
उन्होंने इस किताब में लिखा है कि पूरे संसार पर दोनों देश हावी थे. यहीं से कई इतिहासकारों ने इस बात को आगे बढ़ाया. ज़्यादातर इतिहासकारों का यही मत है कि 18वीं शताब्दी के दूसरे हिस्से तक भारत और चीन हावी रहे. स्थिति तब बदली जब यूरोप का विस्तार शुरू हुआ और कई देशों में उपनिवेश बने. इसी दौरान अंग्रेज़ों का भारत पर क़ब्ज़ा हुआ.
भारतीय इतिहास में मध्यकाल को देखने के अलग-अलग दृष्टिकोण रहे हैं. एक दृष्टिकोण वामपंथी इतिहासकारों का है. इनका मानना है कि मध्यकाल कई लिहाज़ से काफ़ी अहम था. वामपंथी इतिहासकारों का मानना है कि मध्यकाल में तेज़ी से शहरीकरण हुआ, स्थापत्य कला और केंद्रीकृत शासन प्रणाली का विकास हुआ.
सर थॉमस रो ब्रितानी राजा जेम्स प्रथम के पहले आधिकारिक राजदूत थे. उन्हें किंग जेम्स ने 17वीं शताब्दी में भारत में व्यापार की संभावनाओं की तलाश में भेजा था. मध्यकाल में सर थॉमस रो की यात्रा को ऐतिहासिक रिकॉर्ड के तौर पर देखा जाता है. जहांगीर के काल का सर थॉमस रो को एक अहम ऐतिहासिक स्रोत माना जाता है. थॉमस रो 1615 में भारत आए थे और 1619 तक रहे थे. थॉमस ने जहांगीर को दयालु शासक बताया था.
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