Hindi, asked by rajrohitanita, 9 months ago

इस नाटक में अंधेर नगरी चौपट राजा की कल्पना का क्या कारण है ​

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Answered by jharavinder98
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Answer:

‘अंधेर नगरी चौपट राजा’ एक ऐसे ही राजा के बारे में है, जो तुनकमिजाज है, मूर्ख है, असंवेदनशील है और फैसले लेने में अक्षम है. उसकी प्रजा को इस कारण तकलीफ उठानी पड़ रही है.

नाटक के पांचवें दृश्य को पढ़िए और सोचिए कि कहीं आप गोवर्धन दास नाम के वो किरदार तो नहीं, जो कहता है:

गुरुजी ने हमको नाहक यहां रहने को मना किया था. माना कि देश बहुत बुरा है. पर अपना क्या? अपन किसी राजकाज में थोड़े हैं कि कुछ डर है. रोज मिठाई चाभना और मजे में आनन्द से राम-भजन करना.

कहीं आप ऐसा ही तो नहीं सोचते कि माना देश बुरा है लेकिन अपना क्या?

नाटक में आगे इसी गोवर्धन दास को दो सिपाही बिना किसी बात गिरफ्तार कर लेते हैं और फांसी के लिए ले जाने लगते हैं. जब वो इसकी वजह पूछता है, तो जवाब मिलता है:

बात ये है कि कल कोतवाल को फांसी का हुकुम हुआ था. जब फांसी देने को उसको ले गए, तो फांसी का फंदा बड़ा हुआ, क्योंकि कोतवाल साहब दुबले हैं. हम लोगों ने महाराज से अर्ज किया, इस पर हुक्म हुआ कि एक मोटा आदमी पकड़ कर फांसी दे दो, क्योंकि बकरी मारने के अपराध में किसी न किसी की सजा होनी जरूर है, नहीं तो न्याय न होगा. इसी वास्ते हम तुम को ले जाते हैं कि कोतवाल के बदले तुमको फांसी दें.

गोवर्धन दास पूछता है:

तो क्या और कोई मोटा आदमी इस नगर भर में नहीं मिलता, जो मुझ अनाथ फकीर को फांसी देते हो?

सिपाही का जवाब:

इसमें दो बात है. एक तो नगर भर में राजा के न्याय के डर से कोई मुटाता ही नहीं, दूसरे और किसी को पकड़ें, तो वह न जाने क्या बात बनावे कि हमीं लोगों के सिर कहीं न घहराय और फिर इस राज में साधु महात्मा इन्हीं लोगों की तो दुर्दशा है, इसलिए तुम्हीं को फांसी देंगे.

आगे बेगुनाह गोवर्धन दास मन ही मन स्वयं से कहता है:

हाय! मैं ने गुरुजी का कहना न माना, उसी का यह फल है. गुरुजी ने कहा था कि ऐसे नगर में नहीं रहना चाहिए, यह मैंने नहीं सुना. अरे, इस नगर का नाम ही अंधेर नगरी और राजा का नाम चौपट है, तब बचने की क्या आशा है. अरे, इस नगर में ऐसा कोई धर्मात्मा नहीं है, जो फकीर को बचावे. गुरु जी कहां हो? बचाओ गुरुजी... गुरुजी..

तो इस कारण मैं कह रहा था कि कहीं आप ही वो किरदार तो नहीं? और हां, मैं ये सब बातें नाटक के बारे में कह रहा हूं. अगर आप ये पढ़कर कुछ और सोचने लगे, आपका ध्यान कहीं और गया तो उसके लिए मैं जिम्मेदार नहीं हूं. ये सिर्फ आपकी अच्छी कल्पनाशक्ति और भारतेंदु हरीशचंद्र की कलम का जादू है.

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