इस पाठ का शीर्षक 'दुख का अधिकार' कहां तक सार्थक है ? स्पष्ट कीजिए
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इस पाठ का शीर्षक 'दु:ख का अधिकार' पूरी तरह से सार्थक सिद्ध होता है क्योंकि यह अभिव्यक्त करता है कि दु:ख प्रकट करने का अधिकार व्यक्ति की परिस्थिति के अनुसार होता है। यद्यपि दु:ख का अधिकार सभी को है। गरीब बुढ़िया और संभ्रांत महिला दोनों का दुख एक समान ही था।
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दुख का अधिकार कहानी को पढ़कर ऐसा लगता है कि संभ्रांत व्यक्तियों का दुख ज्यादा भारी होता है। उन्हें दुख व्यक्त करने का अधिकार है। उनके दुख को देखकर आसपास के लोग भी दुखी ही नहीं होते हैं, बल्कि उनके प्रति सहानुभूति दर्शाते हैं। ठीक उसी प्रकार के दुख से जब कोई गरीब दुखी होता है तो लोग उसका उपहास ही नहीं उड़ाते है बल्कि उससे घृणा भी प्रकट करते हैं। वे तरह की बातें बनाकर उस पर कटाक्ष करते हैं, मानो गरीब को दुख मनाने का कोई अधिकार ही नहीं है। इस पाठ की पूरी कहानी इसी दुख के आसपास घूमती है अतः यह शीर्षक पूर्णतया सार्थक है।